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427 सिद्धि तप के साथ 1000 से भी ज्यादा अट्ठाई तप ने चेन्नई की इतिहास को बदल दिया

427 सिद्धि तप के साथ 1000 से भी ज्यादा अट्ठाई तप ने चेन्नई की इतिहास को बदल दिया

आचार्य मेघदर्शनसूरीश्वर की पावन निश्रा में हुए 427 सिद्धितप के पारणा के उपलक्ष में आज पगलिया प्रसंग में बताया कि माता-पिता के सुसंस्कार एवं सुसंगत के प्रभाव से, परमात्मा के उपकार से, गुरु भगवंतो की कृपा से एवं श्रीसूरीमंत्र के प्रभाव से घर-घर में सिद्धितप की रौनक प्रगटी है। अभी आयंबिल की नवपद जी की ओली में घर-घर में ओली, हर-घर में ओली के नारे के साथ सभी को वर्तमान तप की आयंबिल की ओली में जुड़ना चाहिए। 427 सिद्धि तप के साथ 1000 से भी ज्यादा अट्ठाई तप ने चेन्नई की इतिहास को बदल दिया है। तपस्वियों के सभी तप के साथ जीवन में और अस्वाद व्रत का अनुसंधान करना चाहिए। संयम मार्ग तक आगे बढ़ना चाहिए। परिवार जनों के लिए भी प्रेरणा की।

उन्होंने कहा कि संयम मार्ग में आगे बढ़ने वाले को पूर्ण सहयोग देना चाहिए। जिनशासन की सच्ची प्रभावना करने के लिए सबसे पहले खुद को जिनशासन से प्रभावित बनना चाहिए। अहंकार को दूर रख के स्वयं को नम्र एवं क्षमाशील बनाने का प्रयास करना चाहिए। जैन भवन में क्षमापना कार्यक्रम में उपस्थित चेन्नई नगर के सभी संतों की निश्रा में आचार्य ने बताया कि पर्युषण पर्व का प्राण क्षमापना है।

गौतमस्वामी की तरह अपनी भूल के लिए क्षमा सामने से मांगनी चाहिए। अपनी गलती ना हो तो भी मृगावतीजी की तरह क्षमा याचना करने से केवल की प्राप्ति हो सकती है। सामने वाला भी अपनी गलती की क्षमा मांगे तब उदारता से क्षमा देनी है। अन्यथा कमठ की तरह वैर की परंपरा हमें संसार में भटका सकती है। सामने वाली की भूल कभी भी याद नहीं रखनी चाहिए। भूल की क्षमा देना आसान है, लेकिन भूल को भूल जाना कठिन है। क्षमा मांगने के बावजूद भी सामने वाला अगर उदारता से क्षमा न दे तो भाव से उनके पास क्षमा याचना करके उनके कल्याण की कामना के साथ रोज 108 नवकार मंत्र का जाप करना चाहिए।

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