रविवार को नॉर्थ टाउन बिन्नी मिल, पेरम्बूर में आचार्य श्री आनन्दऋषिजी का 119वां जन्मोत्सव एवं अठ्ठाई तप महोत्सव प्रात: 9 बजे से नॉर्थ टाउन (बिन्नी मिल) पेरम्बूर में मनाया गया।
यह जन्मोत्सव उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज, तीर्थेशऋषि महाराज, आचार्य मज्ज्जिनपूर्णानन्दजी, आचार्य पुष्पदन्तसागरजी, उप प्रवर्तक विनयमुनि वागीश, उपप्रवर्तक गौतममुनि गुणाकर, पू.संयमरत्नविजयजी, पू.भाग्यचन्द्रविजयजी, महासती कुमुदलताजी, महासती अक्षयप्रज्ञाजी, महासती मधुस्मिताजी के पावन सानिध्य में संपन्न हुआ।
उपाध्याय प्रवीण ऋषि ने अपनी दीक्षा के बाद आचार्य आनन्दऋषि के प्रथम चातुर्मास में शामिल होने का अनुभव बताते हुए कहा कि देवी हुलसा की कुक्षि से जन्मे नेमकुमार ने बाल आयु में ही संयम, चरित्र और तप के अनुगामी बन चरित्र का कठोर संकल्प लिया, पूज्य रत्नऋषिजी का कठोर अनुशासन में रहते हुए धर्म के अनमोल मोती बन निखरे। वे जब भी अपनी मां का स्मरण करते तो माता के प्रेम और उपकारों के कारण उनकी आंखों से आंसू बहने लगते थे। वे बताते थे कि मां ने उन्हें गुरु रत्नऋषिजी के पास 9 वर्ष की आयु में ही प्रतिक्रमण सीखने की जो प्रेरणा दी थी, उनके जीवन में अध्यात्म और धर्म का बीजारोपण किया था, जो मार्ग बताया था उस उनके कदम कभी रुके नहीं, बढ़ते ही गए।
उसके कारण ही वे धर्म और अध्यात्मक की ऊंचाईयों को छू पाए हैं। छोटी आयु में अपनी संतानों को तपस्या और धर्म का पाठ पढ़ाने वाली माताओं और अभिभावकों और अठ्ठाई के साथ-साथ समस्त तपस्यार्थियों का अभिनन्दन किया।
वे जब भी अपनी मां का स्मरण करते तो माता के प्रेम और उपकारों के कारण उनकी आंखों से आंसू बहने लगते थे। वे बताते थे कि मां ने उन्हें गुरु रत्नऋषिजी के पास 9 वर्ष की आयु में ही प्रतिक्रमण सीखने की जो प्रेरणा दी थी, उनके जीवन में अध्यात्म और धर्म का बीजारोपण किया था, जो मार्ग बताया था उस उनके कदम कभी रुके नहीं, बढ़ते ही गए।
उसके कारण ही वे धर्म और अध्यात्मक की ऊंचाईयों को छू पाए हैं। छोटी आयु में अपनी संतानों को तपस्या और धर्म का पाठ पढ़ाने वाली माताओं और अभिभावकों और अठ्ठाई के साथ-साथ समस्त तपस्यार्थियों का अभिनन्दन किया।
उन्होंने कहा कि इस तरह तप और धर्म के पथगामी बच्चे ही आगे चलकर आचार्य आनन्दऋषि के समान समाज को ऊंचाईयां दे पाएंगे। गुरुदेव के इस स्मरणीय जन्मोत्सव पर हमें कटिबद्ध होकर समाज की बुराईयों का उन्मूलन करना है तभी हमारा यह जन्म जयंती मनाना सार्थक होगा और अपने जीवन को परम पावन बना पाएं। तीर्थेशऋषि महाराज ने मधुर स्वरों में गुरुगीत का संगान किया।
तीर्थेशऋषि महाराज ने मधुर स्वरों में गुरुगीत का संगान किया।
संपूर्ण कार्यक्रम की योजना एवं क्रियान्वयन श्री आनन्द जन्मोत्सव समिति के तत्वावधान में समिति के मुख्य प्रतिनिधि बी.गौतमचंद कांकरिया, धर्मीचंद सिंघवी, कमल खटोड़, यशवंत पुंगलिया, महावीर सुराणा, कमल छल्लाणी, गौतमचंद गुगलिया की देखरेख में हुआ।
महासतीजी धर्मप्रभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कहा कि आचार्य आनन्दऋषि जैन शासन के महान संत थे, अपने जीवन में संयम और तप का संग्रह किया और जब चले तो धर्म से भरपूर थे। उन पुण्यात्मा के जन्मोत्सव में शामिल होने का हमें सुअवसर मिला है। संघ ही जिनका श्वास था, परकल्याण ही जिनका भाव था, ऐसे बालब्रह्मचारी, संयम और अनुशासन पथ के अनुगामी महापुरुष के जीवन से हम प्रेरणा लें।
उन पुण्यात्मा के जन्मोत्सव में शामिल होने का हमें सुअवसर मिला है। संघ ही जिनका श्वास था, परकल्याण ही जिनका भाव था, ऐसे बालब्रह्मचारी, संयम और अनुशासन पथ के अनुगामी महापुरुष के जीवन से हम प्रेरणा लें।
महासती कुमुदलताजी ने अपनी गीतिका के द्वारा आचार्यप्रवर के जीवन की यशोगाथा का गान करते हुए अवगत कराया और कहा कि हम उनके विचारों और अनुशासन को अपने जीवन में उतारें और वास्तव में उन्हें जीएं तो यह आचार्यप्रवर के लिए हमारी ओर से सच्ची श्रद्धांजलि और उनका जन्मोत्सव मनाना सार्थक होगा।
उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषिजी के प्रयासों से ही आज वृहद स्तर पर उनके जन्मोत्सव के आयोजन से ही इतने सारे आचार्यों और संतों का एक मंच पर आध्यात्मिक मिलन संभव हुआ है। अनेक अनेक वर्षों की तपस्या से ही गुरु को सुयोग्य शिष्य प्राप्त होते हैं।
उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषिजी के प्रयासों से ही आज वृहद स्तर पर उनके जन्मोत्सव के आयोजन से ही इतने सारे आचार्यों और संतों का एक मंच पर आध्यात्मिक मिलन संभव हुआ है। अनेक अनेक वर्षों की तपस्या से ही गुरु को सुयोग्य शिष्य प्राप्त होते हैं।
महासती अक्षयप्रभाजी ने कहा कि आचार्य आनन्दऋषि जिनशासन के उज्वल गगन के विशाल सूर्य हैं, जिनके विचार और यशोगाथा हमेशा इस जगत को प्रकाशमान करते रहेंगे।उन्होंने अपने जीवन में अनेक झंझावातों को पार करके तप, त्याग, संयम, साधना और चरित्र के बल पर जगत के सामने उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया।
उनके अनुयायी सभी धर्मों के लोग हैं जो आज भी उनकी स्मृतियां, तप और सहयोग को स्वयं में संजोए हुए उनके उपकारों को गाते हैं।
उन्होंने अपने जीवन में अनेक झंझावातों को पार करके तप, त्याग, संयम, साधना और चरित्र के बल पर जगत के सामने उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया।
उनके अनुयायी सभी धर्मों के लोग हैं जो आज भी उनकी स्मृतियां, तप और सहयोग को स्वयं में संजोए हुए उनके उपकारों को गाते हैं।
अध्यक्ष अभय श्रीश्रीमाल और स्वयं के विचारों को मंच रखते हुए महामंत्री अजीत चोरडिय़ा ने कहा कि जब-जब इस धरा पर मानवीय मूल्यों की हानि होती है, तब समय-समय पर आचार्य आनन्दऋषिजी जैसे महापुरुषों का जन्म होता है, ऐसे ही महापुरुष आचार्य भगवंत है। अपने जीवन में अनेक बाधाओं को पार करके शिखर पर पहुंचे ऐसे सरल, गंभीर, ओजस्वी, मधुरवाणी और तेजस्वीता के धनी जिन्होंने भगवान महावीर के विचारों को आगे बढ़ाया और जन-जन की आस्था के केन्द्र बने उन महापुरुष को हम बार-बारंबार नमन करते हुए उनका अनुकरण करें।
अहमदनगर, बेंगलोर, हैदराबाद, इन्दौर, जोधपुर, पूना, मुम्बई व अनेक शहरों से पधारे हुए सभी जनों का स्वागत किया और तपस्वीयों की साता पूछी। जन्मोत्सव समिति के पदाधिकारियों और सभी कार्यकर्ताओं का अभिनन्दन किया।
अपने जीवन में अनेक बाधाओं को पार करके शिखर पर पहुंचे ऐसे सरल, गंभीर, ओजस्वी, मधुरवाणी और तेजस्वीता के धनी जिन्होंने भगवान महावीर के विचारों को आगे बढ़ाया और जन-जन की आस्था के केन्द्र बने उन महापुरुष को हम बार-बारंबार नमन करते हुए उनका अनुकरण करें।
अहमदनगर, बेंगलोर, हैदराबाद, इन्दौर, जोधपुर, पूना, मुम्बई व अनेक शहरों से पधारे हुए सभी जनों का स्वागत किया और तपस्वीयों की साता पूछी। जन्मोत्सव समिति के पदाधिकारियों और सभी कार्यकर्ताओं का अभिनन्दन किया।
श्री आनन्द जन्मोत्सव समिति के चेयरमेन धर्मीचंद सिंघवी ने पधारे हुए गुरु भगवंत, महासतीजी और अतिथियों का स्वागत किया और तपस्वीयों की अनुमोदना की। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन महिला महामंडल, श्री आनन्द तीर्थ महिला परिषद एवं नॉर्थ टाउन महिला मंडल, गुरु आनन्दऋषि फाउंडेशन, अर्हम विजा आदि संस्थाओं के पदाधिकारियों द्वारा ”मां हुलसा पुरस्कार से अनेक बालकों जिन्होंने अल्प आयु में प्रतिक्रमण, भक्तामर स्तोत्र कंठस्थ किया उन्हें सम्मानित किया।
इस अवसर पर उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि की सांसारिक माता चंपादेवी भी उपस्थित रहीं।
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन महिला महामंडल, श्री आनन्द तीर्थ महिला परिषद एवं नॉर्थ टाउन महिला मंडल, गुरु आनन्दऋषि फाउंडेशन, अर्हम विजा आदि संस्थाओं के पदाधिकारियों द्वारा ”मां हुलसा पुरस्कार से अनेक बालकों जिन्होंने अल्प आयु में प्रतिक्रमण, भक्तामर स्तोत्र कंठस्थ किया उन्हें सम्मानित किया।
इस अवसर पर उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि की सांसारिक माता चंपादेवी भी उपस्थित रहीं।
गुरु आनन्द फाउंडेशन के सतीश सुराण ने अपने उद्बोधन द्वारा तपस्वीयों, पधारे हुए समस्त धर्मों और संप्रदायों के अतिथियों का स्वागत और अभिनन्दन किया।
कार्यक्रम में तपस्यार्थी स्वागत लाभार्थी परिवार के के.देवराज नवरतनमल चोरडिय़ा, अभयकुमार, मयूरकुमार, दीपककुमार श्रीश्रीमाल, चैनराज पदमचंद, अरिहंत, किशन तालेड़ा परिवार और आनन्द जन्मोत्सव के सहयोगी परिवारों का अभिनन्दन किया गया।
इस अवसर पर शासन प्रभावना का अनूठा उपक्रम 21 कुष्ठ रोगी एव 4 नेत्रहीन कर्मणा जैन द्वारा अठ्ठाई करने का संकल्प सहित 1008 अठ्ठाई की तपस्याओं की भेंट आचार्य प्रवर के चरणों में अर्पित की गई। सभी तपस्यार्थियों का अभिनन्द और अनुमोदना की।
विनयमुनि वागीश और गौतममुनि गुणाकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह विशाल मैदिनी साक्षी है गुरुवर के यश और कीर्ति की, जिनका जन्मोत्सव मनाने के लिए आज अनेक परंपरा और संप्रदायों के आचार्य और संत-महासतियों ने उपस्थित होकर पावन सानिध्य प्रदान किया है। उन्होंने आनन्दपुर के चातुर्मास और राजस्थान के सांडेराव में आचार्य प्रवर द्वारा किए चातुर्मास और जैन समाज की एकता के सम्मेलनों के अनुभव बताते हुए कहा कि उन्होंने 30 वर्षों तक श्रमण संघ के आचार्य पद को विभूषित कर संघ को शिखर तक पहुंचाया और जैन धर्म की मूलभूत शिक्षाओं को जन-जन के मन का आधार बनाया, उनसे उनको लाभान्वित किया। आज के समय में उनकी शिक्षाओं की हमारे समाज को आवश्यकता है।
उन्होंने आनन्दपुर के चातुर्मास और राजस्थान के सांडेराव में आचार्य प्रवर द्वारा किए चातुर्मास और जैन समाज की एकता के सम्मेलनों के अनुभव बताते हुए कहा कि उन्होंने 30 वर्षों तक श्रमण संघ के आचार्य पद को विभूषित कर संघ को शिखर तक पहुंचाया और जैन धर्म की मूलभूत शिक्षाओं को जन-जन के मन का आधार बनाया, उनसे उनको लाभान्वित किया। आज के समय में उनकी शिक्षाओं की हमारे समाज को आवश्यकता है।
आचार्य मज्ज्जिनपूर्णानन्दजी ने कहा कि आचार्य प्रवर ने अन्तर और बाह्य दोनों साधना के शिखर को छूआ है। यदि जिनशासन को प्रभावशाली बनाना है तो धनवालों की नहीं दिलवालों की आवश्यकता है।
पू.संयमरत्नविजयजी ने अपने विचारों को गीतिका का रूप देकर आचार्य प्रवर की जीवनगाथा को अल्प शब्दों में बहुत अधिक सारांश सहित प्रस्तुत किया।
दिगम्बर संप्रदाय के आचार्य पुष्पदंतसागरजी महाराज ने कहा कि जीवन में दो ही चीजें महत्वपूर्ण होती हैं, एक प्रभाव और दूसरा स्वभाव। प्रभाव की हम कोशिश करते हैं, यह पुण्य से होता है और स्वभाव आत्मा का गुण है, धर्म का प्रतीक है जिससे हममें आत्मीयता, मधुरता आती है और दूसरों के दिलों में जगह बनती है। आचार्यश्री अपने आत्मा के स्वभाव में रहे और धर्म की ऊंचाईयों को छूआ। हमें उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारकर अपने भेदभावों को भुला आपसी संबंधों को पुन: ऊर्जा देना है एक दूसरे को संभालना है।
उन्होंने चार शब्द-नीयर, हीयर, फियर, टीयर अर्थात् आएं, श्रद्धा से सुनें, भय का त्याग करें और पापों का पश्चाताप करें, का अनुसरण करने की प्रेरणा दी।
आचार्यश्री अपने आत्मा के स्वभाव में रहे और धर्म की ऊंचाईयों को छूआ। हमें उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारकर अपने भेदभावों को भुला आपसी संबंधों को पुन: ऊर्जा देना है एक दूसरे को संभालना है।
उन्होंने चार शब्द-नीयर, हीयर, फियर, टीयर अर्थात् आएं, श्रद्धा से सुनें, भय का त्याग करें और पापों का पश्चाताप करें, का अनुसरण करने की प्रेरणा दी।
खतरगच्छाचार्य श्री पूर्णानंद सुरिश्वरजी महाराज ने कहा कि महापुरुषों का जीवन अपने आप में विशिष्ट होता है। उनके गुणों का स्मरण करें और पुण्य की प्राप्ति करते हुए अपना जीवन सफल बनाएं। उन्होंने उपस्थित जन समूह को अन्न का दुुरुपयोग नहीं करने और सामूहिक रात्रि भोज को बंद करने के लिए समाज का आवाह्न किया।
उन्होंने उपस्थित जन समूह को अन्न का दुुरुपयोग नहीं करने और सामूहिक रात्रि भोज को बंद करने के लिए समाज का आवाह्न किया।
आनन्द जन्मोत्सव समिति के चेयरमेन धर्मीचंद सिंघवी ने कार्यक्रम में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देने वाली सभी संस्थाओं, समितियों, उपसमितियों, नॉर्थ टाउन वालंटियर्स और स्थानीय निवासियों का धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में लगभग दस हजार लोगों ने उपस्थित होकर धर्मलाभ लिया। मंगलपाठ से कार्यक्रम का समापन हुआ।
कार्यक्रम में लगभग दस हजार लोगों ने उपस्थित होकर धर्मलाभ लिया। मंगलपाठ से कार्यक्रम का समापन हुआ।
साथ ही साथ उपाध्याय श्री प्रवीणऋषिजी चातुर्मास समिति, चेन्नई के चेयरमेन नवरत्नमल चोरडिय़ा, अध्यक्ष अभयश्रीश्रीमाल, कार्याध्यक्ष पदमचंद तालेड़ा, महामंत्री अजित चोरडिय़ा, कोषाध्यक्ष जेठमल चोरडिय़ा, किशन तालेड़ा, चातुर्मास प्रवेश समिति चेयरमेन यशवंत पुंगलिया और प्राज्ञ जैन संघ, श्री एस.एस. जैन संघ साहुकारपेट, जैन महामंडल साहुकारपेट और समस्त जैन समाज की समितियों और सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों और सदस्यों ने उपस्थित होकर जन्मोत्सव को सफल बनाने में अपना पूर्ण सहयोग दिया।