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ह्रदय अशुद्ध है तो शुभ भाव टिकने वाले नहीं: डॉ. श्री ललित प्रभाजी

ह्रदय अशुद्ध है तो शुभ भाव टिकने वाले नहीं: डॉ. श्री ललित प्रभाजी

सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद

विद्वद्वर्या डॉ. श्री ललित प्रभाजी म.सा. पूज्य गुरुदेव श्री सोभग्यमल जी महारासा के लिए फरमाते है कि..

*पुण्य स्वरूप गुरुदेव ! सुज्ञान सिन्धुः ।*

 *रत्नत्रयस्य परिपालक लोक बन्धुः ।*

*ज्योतिर्मयं ललित – शान्त-सुमोद पूर्णम् ।* *सौभाग्य सद्गुरुवरं शिवदं स्मरामि ॥ २ ॥* •

पुज्य प्रर्वतक की प्रकाश जी मासा. फरमाते है कि → प्रबल पुण्य का उदय हो, पाप कर्म की रुकावत हो तो हृदय में शुभ भाव जन्म लेते है, वैसी पात्रता होनी चाहिए हृदय भी बर्तन है शुद्ध भाव दुध रूप है, ह्रदय अशुद्ध है तो शुभ भाव टिकने वाले नहीं। पहली बात जन्म लेंगे नहीं। शुभ भाव… जीव को आगे बढ़ाने का अवसर देता है। 1 *अज्जविये – सरलता अर्जवता*

 – माया का अंधकार दिल से अलग न हो तो सरलता आती नही, मायावी – किसको ठगु, किसको दुःख दु…माया करे तो जीव नरक में जाता है हम स्वयं ठगे हुए है दुसरों को ठग रहे हे, ठग कर प्रसन्न हो रहे हो परमात्मा करते है कि जिसको तू ठग रहा है वह तु ही ठगा रहा है आत्मा में कर्म अनंतकाल तक रहते है। इस जाल में है उलझा प्रसन्न हो रहा है स्थिति थोड़े समय की…

 ईषट का वियोग रोद्र ध्यान, फिर क्रोध में हत्या तक कर देता है यह भाव रोद्र ध्यान । *माया* रौद्र ध्यान का मूल कारण वह आत्रध्यान में चला जाता हे। *माया – मृषा* 17 वा पाप सबसे बडा मजबूत है। *मिथ्यात्व* जड़ हे पापों की ।

झूठ बोले …माया करी,, झूठ बोलकर सुपात्र दान दे वह भी नरक का कारण है। झूठ बोलने से नुकसान ज्यादा, सुपात्र दान दुध का घडा है। नींबु की कुछ बून्द दूध को खराब कर देती है।

संत आये खाली न चले जाये यह तुम्हारी अज्ञान दशा !!

 दान का मोह त्याग बुद्धि में झूठ नहीं बोलता, दान बुद्धि में झूठ बोलते है। हम ठग रहे है.. तुमको झूठ बुलवा रहे है..वह साधु साधु नहीं । साधु सत्य बोलता है बुलवाता है, अनुमोदना करता है ।

तुम सोचो झूठ बोलकर नरक के भागीदार बनते है ।

प्रबल पुण्य का उदय होता है तो न ठगता ना ठगाता है। *धर्म करने के लिये माया करे तो नरक में जाता है।* भगवान मल्लिनाथ माया करी तपस्या में अलग दिखने की .. स्त्री का रूप मिला। *माया तो माया धन ,की संसार की अलग नहीं है।* जहर तो जहर है अमृत नहीं बनेगा। तपस्या के लिये माया करी भव ज्यादा नहीं थे। *धर्म की माया है तो वह धर्म भी नहीं है।* कषाय अधर्म है तप त्याग धर्म है,, अगर माया जुड़ती है तो ; *जैसे तुम हो वैसे रहो सरम भाव में जीयो गुरुदेव करत थे।* आजकल का साधु पुण्यवान *गुरु आचार्य श्री उमेश मुनि जी मा.सा कहते थे महल, बंगले, मिलते हे ठहरने के लिये,आजकल अच्छी जगह मिल जाती है। जहाँ रहे, जैसा हो एडजस्ट कर ले। *छल, कपट माया न करे।* भगवान ने साधु व श्रावक का धर्म में कोई भेद नहीं किया। कषाय किसी भी रूप में हो कषाय तो कषाय है

गुरुदेव ने दो सुत्र दिये

1- भगवान की वाणी में अश्रद्धा मत करना | वितराग के ज्ञान में कोई कमी नहीं। नहीं समझ में आये तो सोचना मेरी बुद्धि थोड़ी कम है।

2 -अपना हृदय सरल रखना ! *उत्राध्यान सूत्र 3 अध्ययन 12 गाथा*

 *सोही उज्जुय भुयस्स ,धम्मो सद्दस्स चिट्ठई, णिवाण परम जाई घयसतित्व पावए।*

सरल हृदय में धर्म टिकता है। हृदय रूपी जमीन सरल हो तो बीज उगता है धर्म बीज हदय में पड़ता हे तो उद्धार होता है।

गुणीयों के गुण सुनने की पात्रता चाहिए। अच्छी बात सुनने को तैयार नहीं। हमारी दृष्टि दोष दृष्टि । गुण दृष्टि, वाला गुण देखता है। तु कैसा है ! यह देखो। आँखो पे जाला है वह साफ कर …दूसरे की चिंता । हम इतना सुनते हैं फिर भी हमारी आखो की दृष्टि साफ नहीं हुई। सब धुंधला दिखता है। छोटी की जिंदगी में दोष देखकर, बृद्धि मन खराब कर रहे हो,, कोई कैसा भी हो तुम्हे क्या लेना देना।

सम्मयक दर्शन से मोक्ष गये है दर्शन नहीं है तो ज्ञान चारित्र नहीं *श्री रामचंद्र सूरी जी महारासा* कहते है कि- देख साधु बनने वाले को पता है नियम क्या है! बचपन में साधु बना समय नियम क्या है पता है नियम में दोष लगा रहा हूँ साधु दोनो समय ‘प्रतिकृमण करता है प्रायश्चित पश्चाताप करता है दोष का स्वीकार कर लिया।

तेरा क्या होगा तो सोच ले , तू श्रद्धा से भ्रष्ट हुआ,सर्वत्र भ्रष्ट, दर्शन से भ्रष्ट छल कपट से बचो।

1 क्षण का सम्यक दर्शन केवल ज्ञान देने की ताकत रखता है।

*कबीरा तेरी झोपड़ी,गल कटियन के पास ।*

*जो करेगा सो भरेगा तू क्यों हो उदास।।*

सरल बनो ,सरल बनने का मुनि उपदेश करे यहाँ भी आनंद आगे भी आनन्द

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