मुंबई। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि पर्युषण भीतर के प्रदूषण को हटाने का पर्व है। बाहर के प्रदूषण से बीमारियाँ आती हैं और मन के प्रदूषण से परेशानियाँ आती हैं। इसलिए जितनी जरूरत बाहर के प्रदूषण को कम करने की है, उतनी ही जरूरत है भीतर के प्रदूषण को समाप्त करने की। संतप्रवर ने कहा कि पर्युषण हृदय शुद्धि और कषाय मुक्ति का पर्व है। 84 लाख जीवयोनियों से क्षमा मांगना सरल है, पर जिनसे हमारा मनमुटाव है या जिसका हमने और जिसने हमारा दिल दुखाया है उससे माफी मांगना सच्चा धर्म है।
संवत्सरी का इंतजार करने की बजाय आज ही माफी मांगकर हिसाब चुकता कर लें। हम साल भर भले ही गरम रहें, पर अब तो नरम बन जाएं और मन में पलने वाली गांठों को दूर कर लें। जैसे गन्ने की गांठों में रस नहीं होता वैसे ही जो मन मेें दूसरों के प्रति गांठ पाले रखता है उसका जीवन भी नीरस बन जाता है। उन्होंने कहा कि गांठ बन जाने के बाद सामने वाले में केवल दोष ही नजर आते हैं। जिसे हम चाहते हैं उसकी हर बात हमें अच्छी लगती है क्यों न हम सबको चाहना शुरू कर दें ताकि हमें सबकी बातों अच्छी लगनी शुरु हो जाए। याद रखें, दूरियाँ जमीन की नहीं दिल की होती है। इसीलिए तो रूस दूर होकर भी पास है और पाकिस्तान पास होकर भी भारत से दूर है।

संत ललितप्रभ ने ये विचार शुक्रवार को कोरा केन्द्र मैदान में प्रवचनमाला के दौरान रखे। वे पर्युषण पर्व में क्या करें, क्या न करें विषय पर श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि महावीर उस व्यक्ति को ज्यादा पसंद करते हैं जो उनका नाम लेने की बजाय उनकेमार्ग पर चलने की कोशिश करता है। अरिहंत का नाम लेने से हमें मन की शांति तो मिल सकती है, पर अरिहंत बनने के लिए तो हमें महावीर के मार्ग पर चलना होगा। उन्होंने कहा कि सिकन्दर द्वारा हजारों-हजार योद्धाओं को जीतना सरल है, पर खुद को जीतना मुश्किल। उसकी विजय परम विजय है जो दूसरों को जीतने की बजाय स्वयं क ो जीत लेता है।
संसार नहीं, संन्यासी बनकर जाएं-संसार से संन्यासी बनकर जाने की प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा कि संसार में जन्म लेना हमारी नियति है, पर परमात्मा से इतनी प्रार्थना जरूर करें कि जब यह शरीर छूटे तो इस शरीर पर संसारी की बजाय संन्यासी का वेश जरूर हो। व्यक्ति जब भी मुक्त होता है, संसार से उबरकर ही मुक्त होता है। संसार में चाहे जितना रहा जाय और भोगा जाय, मन अतृप्त ही रहता है इसलिए संसारी बनकर भले ही जिओ, पर एक दिन ही सही, संत जीवन अंगीकार करने का भाव अवश्य रखो। इसी में जीवन की धन्यता है।
शोभायात्रा निकलेगी-दिव्य सत्संग समिति के अध्यक्ष पारस जी चपलोत ने बताया कि शनिवार को प्रात: 8.45 बजे कल्पसूत्र और अंतगड़दशांग आगम समिति के समस्त सदस्यों द्वारा राष्ट्र-संतों के करकमलों में समर्पित किया जाएगा।
दिव्य सत्संग का शुभारम्भ लाभार्थी परिवार गौतम भंसाली, संबोधि धाम के कोषाध्यक्ष देवेन्द्र गेलेड़ा, बाडमेर से पोकरदास, पवन जी मालू एवं समिति के पदाधिकारियों ने दीपप्रज्वलन के साथ किया।
रविवार को होगा कल्पसूत्र का अंतर रहस्य पर प्रवचन – समिति के कोषाध्यक्ष किशोरमल जी डागा ने बताया कि कोरा केन्द्र मैदान में शनिवार को प्रात: 9 बजे संत ललितप्रभ कल्पसूत्र का अंतर रहस्य विषय पर जन समुदाय को संबोधित करेंगे।