Share This Post

Featured News / Featured Slider / Khabar

हिन्दी व अंग्रेजी में प्रतिक्रमण की पुस्तक का विमोचन

हिन्दी व अंग्रेजी में प्रतिक्रमण की पुस्तक का विमोचन

जयतिलक मुनि द्वारा संग्रहित

‘सविधि सामायिक एवं प्रतिक्रमण’ हिन्दी व अंग्रेजी में पुस्तक का विमोचन श्री अखिल भारतीय जयमल जैन श्रावक संघ के पूर्व अध्यक्ष तथा पुस्तक के सौजन्यकर्ता श्री रीखबचंद जी बोहरा के कर कमलों से

श्री एस एस जैन ट्रस्ट रॉयपुरम के अध्यक्ष पारसमल कोठारी व सचिव नरेंद्र मरलेचा की उपस्थिति में किया।

जयतिलक मुनि जी ने प्रवचन में बताया कि करुणा के सागर भगवान महावीर ने भव्य जीवों को मोक्ष मार्ग का उपदेश दिया और जिनवाणी रूपी गंगा प्रवाहित की। संसार असार है संयम मे ही सार है ज्ञानी ही संसार को असार मानता है। अज्ञानी संसार में ही सार मानता है। और संसार में परिभ्रमण करता है! जब तक असारता का भान नहीं हो संसार उसको प्रिय लगता है जब मोह हटता है तब उसे वास्तविक सुख का भान होता है। सपने भी दो प्रकार के होते है। व्यक्ति सपने में ही कल्पना करके कर्मबंध कर लेता है। खुली आँख से भी स्वप्न देखता है और बंद आँखो से भी। दोनों ही सत्य नहीं है! स्वप्न तो कोई भी देख सकता है।

एसे स्वप्न सार्थक नहीं है वैसे ही संसार का सुख भी सार्थक नहीं। एक बहुत बड़ा राजा था जिसक सन्तान नहीं थी। वह स्वयं को दुखी मानता था। क्या संतान सुख देगी! वह स्वयं भी अपने कर्मों से दुःखी होगा। फिर हर दंपती को संतान की चाह रहती है। एक बार स्वप्न में 10-15 बच्चों के साथ खेल रहा है! उसी समय दासी ने नींद से जगा दिया तो क्रोध वश दासी का वध कर दिया। स्व्पन भी दुःख देते है! आप भी इस संसार को अपना मानते हैं लेकिन कब तक ! जब तक शरीर में प्राण है किंतु क्या यह परिवार, घर, गहने किसी के हुए है जो आपके होंगे।

जीव जींद में भी मेरा मेरा करता है! जैसे सुख साधना परिवार की वृद्धि होती है वैसे वैसे उसमें उलझता रहता है! जब तक आँख खुली है ! आँख बंद करते हीं सब कुछ पराया हो जाएगा।

इस शरीर की कितनी भी सार संभाल कर लो यह अंत में मुट्ठी भर राख बनेगा! अत: ज्ञानी जन कहते हैं कोई यह शरिर, घर, परिवार, धन सब यहीं पड़ा रह जाएगा। यहाँ तक सामायिक में भी जीव ताख जाख में ही उलझा रहता है!

एक राजकुमार जिसे कभी बाहर ही नहीं निकला अतः उसे से बाहरी दुनियाँ का ज्ञान नहीं था। युवावस्था प्राप्त होने पर राजा ने उसे मंत्री पुत्र के साथ भ्रमण करने भेजा। उसने प्रथम बार बाजार देखा फिर ढोल बजते देखे! शादी ब्याह का माहौल था। आगे निकले घुम फिर कर शाम को लौटें उस समय सेठ के घर में रूदन मचा रहे थे। राजकुमार ने पुछा यह क्या सबेरे उस समय

 हम खुशी तो हंसी खुशी का माहौल था अब यह भयानक माहौल। मंत्री पुत्र ने कहा यह दुल्हा मर गया इसलिए सब रूदन कर रहे हैं। राजकुमार ने पूछा क्या मैं भी एक दिन मर जाऊँगा। मंत्री पुत्र ने कहा जो इस संसार में आया उसे मरना ही पड़ेगा मुनि के पास ले गये राजकुमार को! बहुत समझाया किंतु वह नहीं माना। ऋषि ने एक औषधि दी जिससे सारा दिन उसे मल विसर्जन होता रहा! मुनि ने समझाया देख यह शरीर मल से बना है!

दुर्गंधमय पदार्थों का यह शरीर बना! बस उपर से चमड़ी से ढका है अतः यह सुन्दर दिखता है। यह शरीर सडे गले विध्वंश युक्त पुगलो से बना है! इसे सजाने में वह पाप करता है। जैसे ही संसार के भौतिक साधनों से भी सुख नहीं मिलता बल्कि कि वह तो माया है! जो भव्य जीव इस बात को समझ लेता है मनुष्य जन्म क्यों मिला है लक्ष्य को समझ लेता है कि आत्मा अजर अमर है! शरीर नश्वर है। सम्यग ज्ञान दर्शन चारित्र मोक्ष मार्ग। जब दर्शन विशुद्ध हो जाता है ज्ञान सम्यक एवं चारित्र भी स्वय बनता है! यह बोध जिनेश्वरों ने दिया! जो भव्य जीव इन बातों का गृहण करता है उसका कल्याण निश्चित है।

यह जानकारी ज्ञानचंद कोठारी ने दी।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar