किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा क्रोध के साथ मित्रता करोगे तो संचित पुण्य की शक्ति कम हो जाएगी। इसके कारण आपके कई कार्य रुक जाएंगे। क्रोध हिंसा पैदा करता है। क्रोध व कषायों के कारण भव प्रबंधन चल रहा है। इसके लिए क्रोध व कषायों से मुक्त होना पड़ेेगा।
उन्होंने कहा निमित्त है और क्रोध आ जाए तो कोई बात नहीं, पर निमित्त के बिना क्रोध करेंगे तो क्रोधी व्यक्ति को कई प्रकार के रोग घेर लेते हैं। क्रोध के कारण माता पिता, कुल की बदनामी होती है। क्रोध करते समय कोई भी चीज का भान ही नहीं रहता है। क्रोध के उदय से सोचने की शक्ति खत्म हो जाती है।
उस समय व्यक्ति परमार्थ को भी भूल जाता है जैसे संसार भ्रमण से मुक्ति पाने के लिए मुझे मानव जन्म मिला है, मोक्ष की प्राप्ति मेरे जीवन का लक्ष्य है आदि। मुझे इस भव में सद्गति, मुक्ति मिलेगी वह इन सबको भूल जाता है। तीव्र क्रोध के कारण अन्दर कितनी जलन पैदा होगी लेकिन उस समय वह कुछ सोचता नहीं है।
क्रोध के कारण माता पिता, कुल की बदनामी होती है। क्रोध करते समय कोई भी चीज का भान ही नहीं रहता है। क्रोध के उदय से सोचने की शक्ति खत्म हो जाती है। उस समय व्यक्ति परमार्थ को भी भूल जाता है जैसे संसार भ्रमण से मुक्ति पाने के लिए मुझे मानव जन्म मिला है, मोक्ष की प्राप्ति मेरे जीवन का लक्ष्य है आदि।
मुझे इस भव में सद्गति, मुक्ति मिलेगी वह इन सबको भूल जाता है। क्रोध प्रबल है तो आपका ज्ञान निरर्थक है। उन्होंने कहा हमें आत्मा के स्वरूप को देखना चाहिए ।
क्रोधी व्यक्ति किसी की अच्छी सलाह भी नहीं मानता। क्रोधी व्यक्ति का प्रभाव क्रोध नहीं है बल्कि उसके पुण्योदय के कारण है। पुण्योदय वफादार होता है लेकिन हम समझते हैं यह हमारा प्रभाव है।