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हर व्यक्ति सुख की तलाश में संपूर्ण जीवन भटकता रहता है: गच्छाधिपति प. पू. आ. भ. श्री उदयप्रभसुरीश्वरजी म. सा.

हर व्यक्ति सुख की तलाश में संपूर्ण जीवन भटकता रहता है: गच्छाधिपति प. पू. आ. भ. श्री उदयप्रभसुरीश्वरजी म. सा.

श्री चंद्रप्रभु जैन नया मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में चल रहे चातुर्मास की प्रवचनधारा में गच्छाधिपति प. पू. आ. भ. श्री उदयप्रभसुरीश्वरजी म. सा. ने आराधना भवन में उपस्थित विशाल जन समूह को संबोधित करके कहा कि हर व्यक्ति सुख चाहता है, सुख की तलाश में संपूर्ण जीवन भटकता रहता है। पल-पल हर सुख जीर्ण-शीर्ण बनता जाता है। 500 ग्रंथ के रचयिता पू. उमास्वाति म. सा. ने चार प्रकार के सुख बताए है जिसमे तीन संसारी के और एक संयमी का

1. पहला सुख: विषय का सुख – अर्थात् जो सुख इंद्रियों के द्वारा मिले, स्पर्श का सुख, रस का सुख, सूंघने का सुख, देखने का सुख, श्रवण का सुख। जो सुख साधनों से मिले गाड़ी, बंगला, TV, मोबाइल इत्यादि – भोग एवं उपभोग की सामग्री से जो सुख मिले। जो वस्तु एक ही बार उपयोग की जा सके – जैसे खाने की वस्तुएं उसे “भोग” कहा जाता है एवं जो वस्तुएं बार बार उपयोग की जा सके जैसे कपड़े, जेवर, बिस्तर, चद्दर इत्यादि को “उपभोग” कहा जाता है। इन सबसे जो सुख मिलता है उसे “विषय सुख” कहते हैं।

2. दूसरा सुख: दुखों का अभाव – अर्थात किसी भी प्रकार की कमी ना हो। घर में, ना साधनों की, ना ही सामग्री की, ना ही किसी प्रकार का कोई तनाव हो। ना पैसे की चिंता हो, ना ही पुत्र-पुत्रियों की, ना परिवार को लेकर कोई tension हो, ना रिश्तों में कोई दरार हो ना ही रिश्तेदारी में कोई तकरार।

3. तीसरा सुख: दुखों के प्रतिकार का सुख – यानी कड़क भूख लगने के बाद मिलने वाली स्वादिष्ठ भोजन साम्रगी का सुख, कड़ी मेहनत के बाद मिलने वाले परीक्षा के सौ प्रतिशत परिणाम (result) का सुख, खून पसीने की कमाई से मिलने वाले पैसे का सुख।

4. चौथा सुख: श्रमण सुख – श्रमण का सुख किसी भी वस्तु की गुलामी के बिना मिलने वाला सुख अर्थात साम्रगी, साधन, संबंध, संपत्ति, स्वजन बिना का सुख, संतोष का सुख जो एक संन्यासी, एक संत के पास ही होता हैं। प्रवचनकार भगवंत फरमाते है कि पहले के तीनों सुख पल-पल घटते जाते है, कम होते जाते है। जीर्ण शीर्ण होते रहते है। परंतु अंतिम चौथा सुख ही शाश्वत है, बढ़ता जाता है। अतः सुख के अभिलाषी प्राणियों को यही सुख पाने का प्रयत्न करना चाहिए।

From,

KIRIT JAIN

Secretary

Sri CHANDRA PRABHU JAIN NAYA MANDIR TRUST SOWCARPET CHENNAI

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