चेन्नई. श्री पीपीएसएस जैन संघ पाडि़ के तत्वावधान में यहां होली चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी विजयलता ने कहा कि प्रभु महावीर ने अपने कर्मों का कर्ज चुकाने के लिए साढे बारह वर्ष तक साधना की।
साधनाकाल में उन्होंने अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों को समभाव से सहा। उन्हें एक ही रात में 20 उपसर्ग आए किंतु उन्होंने किसी प्रकार का राग-द्वेष नहीं किया क्योंकि वे जानते थे कि अगर मैं राग-द्वेष करूंगा तो आत्मा कषायों के भाव से लिप्त हो जाएगी और आठ प्रकार की आत्माओं में से एक ही आत्मा निंदनीय है।
इसलिए वंदनीय आत्मा को निंदनीय क्यों बनाएं।
उन्होंने कहा कहने में सजा यानी कर्मों की श्रृंखला बढाना और सहमने में मजा यानी कर्मों की निर्जरा होना।
गाली पलटे तो अनेक नहीं पलटे तो एक की एक। गाली सुनने की शक्ति भी जिनवाणी के प्रभाव से ही प्राप्त होती है। जिनवाणी से अनादिकाल से हमरी आत्मा में लगे कांटे निकल सकते हैं।