चेन्नई. आचार्य वर्धमानसागर सूरी के सानिध्य में जैन धर्म के तैंतीसवें तीर्थकर पाश्र्वनाथ का मोक्ष कल्याणक मनाया गया। इस मौके पर 200 से अधिक साधकों ने वेपरी जैन संघ में आयंबिल का तप एवं सैकड़ों लोगों ने उपवास किया। घर घर तोरण लगाए गए। मंदिर में विशेष अंगरचना और सजाई गई। सामूहिक आरती हुई।
इस अवसर पर आचार्य विमलसागर सूरी ने कहा पाश्र्वनाथ सुख शांति समाधि और साधना के आधार माने जाते हैं। देश विदेश में सर्वाधिक मूर्तियां और सर्वाधि मूर्तिया पाश्र्वनाथ की है। स्तोत्र, स्तवन, स्तुतियां, मंत्रकल्प, विधान और साधनाएं भी पाश्र्वनाथ की ही पाई जाती हंै। नागदेवता से परिवेष्ठित होती हैं पाश्र्वनाथ की मूर्तियां। सभी तीर्थकरों में सर्वाधिक श्रद्धा और भक्ति पाश्र्वनाथ की देखी जाती है।
भारत के विभिन्न प्रांतों में पाश्र्वनाथ के अलग अलग घटनाओं के प्राचीन तीर्थ आज भी जैन स्थापत्य के गौरव को दर्शाती है। वाराणसी में पाश्र्वनाथ का च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान हुआ था तथा झारखंड में सम्वेत शिखर की पहाड़ी पर निर्वाण हुआ था। 100 वर्ष का उनका जीवनकाल था।तीर्थकर महावीर के जन्म से 250 वर्ष पूर्व पाश्र्वनाथ का निर्वाण हुआ था। महावीरस्वामी के मातापिता पाश्र्वनाथ के उपासक थे।
आचार्य विमलसागर सूरी ने बताया की जैन परंपरा में हर किसी को भगवान मानकर पूजा नहीं की जा सकती। जैन दर्शन सर्वगुण सम्पन्न, सर्वदोष रहित आत्माओं को ही भगवान मानता है। दोषमुक्त पूजा ही हमें दोषमुक्त कर सकती है।
जैन परंपरा की दृढ मान्यता है इसलिए जैन परंपरा मे किसी गुरु संत, श्रमण, मुनि, आचार्य, देवता और देवी को भगवान मानकर उनकी पूजा नहीं की जा सकती। तर्क स्पष्ट है कि जो दोषयुक्त है वह हमें दोषमुक्त नहीं कर सकते।
भगवान में क्रोध,अभिमान, माया, कपट, लोभ, लालसा, इच्छा, तृष्णा, ईष्र्या, भेदभाव, पक्षपात, निद्रा, भय, प्रमाद, अज्ञान, मिथ्या, राग-द्वेष आदि कोई भी दोष नहीं होनी चाहिए।