यहां जैन स्थानक में विराजित साध्वी मयंकमणि ने कहा हर आत्मा शुद्ध और निर्मल होता है लेकिन कर्म बंधन से अशुद्ध हो जाती है। शुभ व अशुभ कर्मो का बंध आत्मा निरंतर कर रही है। अशुभ विचार व अशुभ कर्मबंध एवं शुभ विचार शुभ कर्मबंध।
अशुभ कर्म पाप और शुभ कर्म पुण्य है। कर्म चार प्रकार के होते हैं-स्पृष्ट,बद्ध, निबद्ध व निकाचित। कुछ कर्म ऐसे हीं टूट जाते हैं, कुछ कर्म थोड़ी मेहनत से, कुछ अधिक मेहनत व प्रायश्चित से टूट जाते हैं लेकिन कुछ कर्म ऐसे होते हैं जो भुगते बिना नहीं टूटते हैं। इसी प्रकार हम लोगों को भावों के हिसाब से फल मिलता है।