कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): शुक्रवार को आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं। यह पुरुष अनेक चित्तों अर्थात् भावों वाला होता है।
आदमी कभी आक्रोश में दिखाई देता है, कभी अहंकार का नाग उसके भीतर फुफकारने लगता है तो कभी माया की वृत्ति उभर जाती है। कभी लोभ, लालसा का वेग भी दिखाई देने लगता है। वहीं कई बार आदमी बड़ा क्षमाशील दिखाई देने लगता है। कभी बहुत विनम्र, ऋजु व संतोषी भावों वाला जान पड़ता है। हमारे इस मन के पट्ट पर अनेक दृश्य उभरते हैं। यह मनुष्य के मन की एक स्थिति है।
मन कभी चंचल तो कभी विकृतिपूर्ण भी हो जाता है। इन वृत्तियों में एक है-लोभ की वृत्ति। आदमी के मन में चाह, लालसा पैदा हो जाती है। कई बार योग्यता कम होते हुए भी उसे ज्यादा की लालसा हो जाती है। आदमी सत्पुरुषार्थ करे, अपनी योग्यता को बढ़ाए और फिर उसके अनुरूप आशा करे तो एक अच्छी बात हो सकती है। आदमी को छोटी-छोटी चीजों में नहीं उलझना चाहिए, कई बार छोटी चीजों में उलझने के कारण आदमी अपना कुछ अच्छा खो देता है।
आचार्यश्री ने संबोधि के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि संवाद की शैली के इस ग्रन्थ के माध्यम से मोह के उन्मूलन की व्याख्या के दौरान दुःख के उत्पन्न होने का कारण भी बताया गया है। दुःख के उत्पन्न होने का मूल कारण आदमी के भीतर होता है। वह कारण है कामनाओं की वृद्धि। आदमी के भीतर जब कामनाएं बढ़ती हैं तो दुःख भी बढ़ने लगता है।
मोह, लोभ, लालसा के कारण दुःख के सागर में प्राणी गोते लगाता है। आदमी को वीतरागता की साधना करते हुए स्वयं को दुःख मुक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने भीतर के दोषों को क्षीण करे, लालसा को कम करने का प्रयास करे तो वह वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
कई बार वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ते हुए प्राणी लोभ आदि कारण गिर भी सकता है। फिर भी आदमी को आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। कहा गया है कि हर असफलता आदमी को सफलता की दिशा में आगे बढ़ाने वाली होती है। इसलिए आदमी को झटपट घबराना नहीं चाहिए, उसे वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयत्न करना चाहिए।
आचार्यश्री ने स्वरचित ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ ग्रन्थ के माध्यम से लोगों को आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के जीवन के द्वितीय दशक घटना प्रसंगों का वर्णन किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे जयपुर के सांसद श्री रामचंद्र बोहरा ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
सिक्किम हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जज श्री एन.के. जैन ने भी आचार्यश्री के दर्शन करने, आचार्यश्री के मंगल प्रवचन श्रवण के पश्चात् अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने दोनों महानुभावों को पावन पाथेय प्रदान किया। इस दौरान श्री नरेश मेहता ने आचार्यश्री के समक्ष अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए और आचार्यश्री से पावन आशीष प्राप्त किया।
श्री विकास नाहर की धर्मपत्नी श्रीमती वनिता नाहर ने आचार्यश्री से 29 की तपस्या (मासखमण) का प्रत्याख्यान किया। साथ ही अनेकानेक तपस्वियों ने आचार्यश्री से अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान कर आत्म कल्याण की दिशा में आगे बढ़े।
*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*