तिरुचेंदूर. यहां स्थित गवर्नमेंट हायर सेकंडरी स्कूल में विराजित आचार्य महाश्रमण ने कहा हमारे जीवन और आध्यात्मिक साधना में समता अत्यंत महत्वपूर्ण है। जिसका मन समता में सल्लीन हो जाए वह मानसिक रूप से हमेशा सुखी रह सकता है।
यदि समता रूपी कवच में आदमी समाहित है तो कोई भी बाहरी स्थिति उसे मानसिक रूप से दु:खी नहीं कर सकती। सुख-दु:ख, अनुकूल-प्रतिकूल आदि किसी भी परिस्थिति में न अधिक प्रियता और न ही अधिक अप्रियता में जाने के बजाय स्वयं को हमेशा मध्यस्थ रखने का प्रयास करें। हमेशा समता में रहने का प्रयास करना चाहिए।
लाभ होने पर ज्यादा खुशी नहीं और अलाभ या हानि होने पर ज्यादा दु:खी नहीं होना चाहिए। शरीर पूर्ण रूप से निरोग है तो भी ठीक है और रोगग्रस्त हो जाए तो उपचार तो ठीक है लेकिन मानसिक शांति और समता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। जन्म-मृत्यु, निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान की स्थिति में भी समता रखने का प्रयास करें।
आपस में सद्भाव, सद्व्यवहार हो तो जिंदगी का एक सुख मानो प्राप्त हो सकता है। ऐसा प्रयास करना चाहिए कि कलह को किसी तरह का मौका न मिले। परस्पर सेवा की भावना हो तो सोने में सुहागा हो सकता है। व्यावहारिक समता और व्यवहारकुशलता को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। चारित्रात्माओं सहित गृहस्थों को भी अपने जीवन में समता बनाए रखने का प्रयास करें।
आचार्य ने प्रवचन के बाद संतों से प्रवचन से संबंधित प्रश्न पूछे और उनके जवाब के पश्चात उनका समाधान भी दिया।