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हमें परमात्मा की सेवा करनी चाहिए लेकिन उसके लिए पात्रता की जरूरत होती है: आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

हमें परमात्मा की सेवा करनी चाहिए लेकिन उसके लिए पात्रता की जरूरत होती है: आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

किलपाॅक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा परमात्मा के तीसरे संभवनाथ के स्तवन में बताया गया है कि हमें परमात्मा की सेवा करनी चाहिए लेकिन उसके लिए पात्रता की जरूरत होती है।

जिनकी सेवा में एक लाख देव तत्पर रहते हैं यदि उनकी सेवा करनी है तो योग्यता तो चाहिए। इसके लिए तीन प्रकार की भूमिका जिस साधक में रहती है वही योग्य होता है। पहली भूमिका अनादि काल से चित्त में रहे दोषों को दूर करना।

आज संसार के सब प्राणियों में भय व्याप्त है, चित्त स्थिर भयमुक्त होने पर ही बन सकता है। चित्त की प्रसन्नता हो तभी आप परमात्मा की सेवा कर सकते हैं। मन में उद्वेग है तो यह संभव नहीं है।

अखेद यानी सेवा साधना करते समय अन्दर खेद पैदा न हो। जब तक कार्य की सिद्धी न हो हमारा उत्साह बना रहना चाहिए। सेवा साधना को आगे बढाओ एक दिन सिद्धी जरुर मिलेगी। उत्साह भंग होने के बाद सिद्धी संभव नहीं है। हमें हमारे जीवन में आत्मनिरीक्षण करना है कि चित्त में कषाय तो भरा नहीं है।

उन्होंने बताया कि वृद्धावस्था में स्वजन वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा देते हैं। संसार में कितने ही रिश्ते जोड़ लो वे कोई काम के नहीं हैं। उन्होंने कहा कर्म के गणित को समझ नहीं सकता है। यह संसार विचित्रताओं से भरा है। यह पूरा संसार एक बंधन है।
यहां सम्यक दर्शन मिलने पर पूरा संसार असार लगेगा। कोई भी आत्मा बंधन में रहने को तैयार नहीं है। इसीलिए कुटुम्ब परिवार रिश्ते नाते हकीकत में आत्मा के लिए बंधन है। यह आपको साधना व आराधना नहीं करने देंगे क्योंकि परिवार की चिंता, भय आदि घेरे रहते हैं।

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