चेन्नई के साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा नवकार में ‘स’ आठ बार आता है जो अष्टसिद्धियों का सूचक है। नवकार का सच्चा आराधक अष्टसिद्धियों को प्राप्त कर लेता है। नवकार के ध्यान से मान की समाप्ति व ज्ञान की प्राप्ति होती है। जो नवकार को जानते हैं, नवकार में जीते व उसे पीते हैं, वे आनंद पा लेते हैं।
नवकार का जल्दी-जल्दी उच्चारण करने से उच्चारण में अशुद्धता आ जाती है जिससे कई बार शब्द का अर्थ बदलने से अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है। नवकार का शुद्ध उच्चारण,नवकार के वर्ण-अर्थ का ज्ञान व उसके साथ एकाग्रता स्थापित करने पर ही हमें सिद्धियां हासिल होती है।
नवकार का प्रवेश द्वार ‘नमो’ है। नवकार हमें नमना सिखाता है। जिसने सिर झुका लिया, उसने सब कुछ जीत लिया। अकड़ेे रहने के कारण आंधी के आने पर अनेक पेड़ टूट जाते हैं, लेकिन झुककर छोटे पौधे सुरक्षित बच जाते हैं, इसलिए झुकने वाला बच गया और अकडऩे वाला टूट गया।
मुनि ने नवकार आराधना के छठे दिन ‘सव्व पावप्पणासणो’ पद के वर्णानुसार स्तंभण (खंभात), वल्लभीपुर, पावापुरी, वही पाश्र्वनाथ, परासली, नागेश्वर, सत्यपुर (सांचौर), नोघणवदर तीर्थ की भाव यात्रा करवाई।