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हमारे भीतर में रही चैतन्यता को पाने का मार्ग सजाग मन है:  आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.

हमारे भीतर में रही चैतन्यता को पाने का मार्ग सजाग मन है:  आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.

     🛕 *स्थल: श्री राजेन्द्र भावन चेन्नई*

 🪷 *विश्व वंदनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, संघ एकता शिल्पी प.पू. युगप्रभावक आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा. के भव्य वर्षावास चल रहा है।

इस प्रवचन में विषय श्री अभीधान राजेंद्र कोष भाग 7

~ जो मानव ने आत्मा की विराट शक्ति का बोध पा लिया है वह मानव बहुत ही कम भवों में मुक्ति को प्राप्त कर सकता ही है।

~ स्वयं के अंतःकरण को देखने का नजरिया वह ज्ञानियों की और ज्ञान पाने का मूल मार्ग है।

~ हमारे मन में रहे हुए गलत विचार गलत भावनाएं सबसे पहले हमें ही जलाते हैं, दुखी करते हैं, दर्द देते हैं।

~प्रभु महावीर स्वामी ने कहा है कि जयना धर्म केवल मनुष्य लोक तक ही नहीं किंतु देव लोक, नरक, तिर्ययंच् गती में भी जयना धर्म का पालन हो सकता है।

~ परम पूज्य प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वर जी महाराज साहब ने स्वयं की अध्यात्मिक शक्ति को अनंत ज्ञानी से जोड़कर शासन की सुरक्षा के लिए सर्वश्रेष्ठ कार्य अत्यंत सरलता से किए थे।

~ सभी पुराने भवों में हमारा मन केवल शरीर, आहार के रस में ही रहा था, लेकिन कभी भी शरीर में रहे आत्मा का रस नहीं रहा।

~ हमारे भीतर में रही चैतन्यता को पाने का मार्ग सजाग मन है।

~पूर्व के भवों में बहुत अनुकूलता मिली लेकिन हमारा पुरुषार्थ बलवान नहीं था इसीलिए आत्मा शक्ति प्रगट नहीं हो पाई।

~ पूर्व के अनंत भव के सामने यह भव का आयुष्य अत्यंत अल्प है, क्षणिक है तो साधक हर पल स्वयं के हित का ही पुरुषार्थ करता रहे।

    *”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*

🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪

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