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हमारे पास जितना है उससे ज्यादा पाने की लालसा हमेशा बनी रहती है: प.पू. सुयशा श्रीजी मसा

हमारे पास जितना है उससे ज्यादा पाने की लालसा हमेशा बनी रहती है: प.पू. सुयशा श्रीजी मसा

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज तारीख 21 अगस्त रविवार को परम पूज्य सुधाकवर जी मसा ने मेवाड़ के महान संत पूज्य गुरुदेव मोहनलाल जी मसा की पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी जीवनी पर प्रकाश डाला! गुरुदेव ने शाहपुरा में विक्रम संवत 1992 में 17 वर्ष की आयु में दीक्षा अंगीकार की थी! दीक्षा के समय उन्होंने 17 अगमों को कंठस्थ कर लिए थे! उन्होंने अपने गुरुदेव की हर समय बहुत अच्छी सेवा की थी! उनकी आवाज या उनका संदेश रात्रि में बहुत दूर-दूर तक सुनाई देता था! एक गांव में हो रही पशु बलि को हमेशा के लिए रुकवा कर बहुत बड़ा पुण्य का कार्य किया था! अद्भुत प्रतिभा के धनी गुरुदेव का देवलोक भी शाहपुरा में ही हुआ था!

प.पू. सुयशा श्रीजी मसा ने फरमाया:-हमारे पास जितना है उससे ज्यादा पाने की लालसा हमेशा बनी रहती है! यही हमारे दुख का कारण होता है! भोजन कितना भी अच्छा हो, पेट भरने के बाद हम खा नहीं सकते! शरबत, आइसक्रीम, चाय काफी सबकी सीमा तय होती है!

हमारे पास अत्यअधिक धन हो तो भी हमारा जीवन प्रकृति के कुछ नियमों पर आधारित है! रास्ता भटकने पर यू-टर्न लिया जा सकता है लेकिन जिंदगी में कभी-कभी ऐसे मोड़ आते हैं जहां पर यू-टर्न संभव नहीं है! जरूरत से ज्यादा कमाना, उसके बाद अधिकार करने की प्रवृत्ति और हमारा कहा ना मानने पर परेशान होने की आदत हमें दुखी कर देती है! हमारी छोटी-छोटी गलतियां या हमारे छोटे छोटे झूठ भी हमारे पाप के घड़े को भर देती हैं!

हमारी घृणा हमारे धिक्कार भाव को प्रस्तुत करती हैं! और ये भाव हमारे सद्गुण और सद्भाव को नष्ट कर देते हैं! हम हमारे मन में दूसरों के प्रति सद्भाव पैदा करने की कोशिश तो कर सकते हैं लेकिन, दूसरों के मन में हमारे प्रति सद्भाव पैदा करने की क्षमता हमारे में नहीं है! हमारी इमानदारी और हमारा व्यवहार यह तय करता है कि कौन हमें उसका हितेषी समझेगा, कौन हमें उसका दोस्त समझेगा, कौन हमें उसका विश्वास पात्र समझेगा! हमें आत्ममंथन करना होगा कि हम हमारे जीवन को कैसे स्पष्ट स्वस्थ और उपयोगी बनाएं!

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