हमारे जीवन के हर क्षण ही अंतिम क्षण का निर्माण करता है
Sagevaani.com @चेन्नई; श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास में उत्तराध्यन सूत्र के पाँचवे अध्ययन के तीसरे श्लोक के विवेचन में धर्मपरिषद् को सम्बोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने कहा कि हर व्यक्ति का मरण अवश्य होगा। मरण कैसा हो, यह चिन्तन जरूरी है कि हम समाधि मरण की ओर बढ़ रहे है या संक्लेश मरण की ओर। जीव को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है- ज्ञानी और अज्ञानी। जो जीव स्वयं का बोध पहचान लेता है, आगे कहां जाना है, मूल लक्ष्य मोक्ष की साधना को स्वीकार कर प्रवृत्ति करता है, वह ज्ञानी है। जो संसार के भ्रमण में गुमता ही रहता है- वह अज्ञानी। हम अपने इस अमूल्य मनुष्य जन्म का सही लक्ष्य बनायें, यही लक्ष्य रहे कि हमारे अब कम से कम भव भ्रमण हो, एक, दो या तीन और हम सिद्ध बुद्ध बन जाये।
◆ निवृत्ति खण्ड रहे चिन्तनशील
गुरुश्री ने आगे कहा कि हर व्यक्ति हर समय कुछ न कुछ प्रवृत्ति करता रहता ही है। मन तो हमारा सोने के समय भी चलता ही रहता है लेकिन हमारी काया सुप्त अवस्था में होती है, हमें मालूम नहीं पड़ता। हम भी मन की प्रवृत्ति को रोक भी नहीं पाते। दूसरा है निवृत्त खण्ड- शरीर और इन्द्रियों से होने वाली दो प्रवृत्तियों के मध्य का भाग है- निवृत्ति। निवृत्ति काल हमारा चिन्तनशील काल बने, यह ध्यान रहे। जब शरीर या इन्द्रियाँ अस्वस्थ, अशक्त हो जाती है, आपका रस भी है, चाहते हुए भी कार्य नहीं कर पाते है- वह अशक्य खण्ड है।
◆ कृति, सृति, स्मृति से महत्वपूर्ण रुचि
आचार्य प्रवर ने कहा कि कृति (करना), सृति (सुनना), स्मृति (याद करना)- जिन्दगी की सभी क्रियाएँ इन तीनों में समाहित हो गई। इन तीनों से भी बढ़ कर है- रुचि (हमारी पसन्द)। रुचि के अभाव वाली कृति, सृति और स्मृति तीनों महत्वपूर्ण नहीं है। इन चारों शब्दों में सबसे महत्वपूर्ण शब्द है रुचि। हमारी रुचि ही हमारा मरण तय करती है कि हमारा मरण कैसा हो। जीवन के सारे क्षण मिलकर ही अन्तिम क्षण का निर्णय करते है, निर्माण करते है, निर्धारण करते है। संसार क्षेत्र में करने पर सजा मिलती है, जबकि अध्यात्म के क्षेत्र में करने से ही नहीं, सोचने से किये कार्यों पर भी सजा मिलती है। परमात्मा महावीर की वाणी ही हर साधु प्रवचन में सुनाते हैं। वे अपना कर्तव्य निभाते है और अगर कोई एक प्रवचन, एक वाक्य भी किसी का उपकार हो जाये तो वह कर्तव्य सफल हो जाता है।
◆ अंतिम समय में परमात्म वाणी का हो श्रवण
गुरुवर ने कहा कि अंत गति सो मति अर्थात जिस व्यक्ति की जैसी गति होने वाली होती है, वैसी उसके अन्तिम समय की मति बन जाती है। साधु जीवन में हमारे मरण की भी एक प्रक्रिया है। अंतिम समय में उसे परमात्मा की वाणी का रसास्वादन कराते है। श्रावक भी अपने अंतिम क्षण, समय का सही नियोजन करे। करना, सुनना, याद रखना हमारा व्यापार है। रुचि हमारा प्रोफिट है। हमारी रुचि का पता निवृत्ति काल में मालूम पड़ता है और उस समय में हम जो कार्य करते है, वहीं महत्वपूर्ण है जैसे हम धार्मिक कार्यों में बिताते हैं या मोबाइल या अन्य में बिताते हैं।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती