किलपाॅक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. ने प्रवचन में कहा कि पानी बरसने के अनेक कारण हैं जैसे कि वनस्पतिकाय भी बारिश के पानी को आकर्षित करता है। जहां जलयोनि नहीं होती है, वहां बादल बिना बरसे चले जाते हैं।
वहां कोई सहयोग करने वाला नहीं है। वायु को जलयोनि कहा गया है। ज्ञानियों ने विज्ञान और धर्म की तुलना करने की कोशिश की है। जीव और पुद्गल मिलकर पानी का रूप बनते हैं। हमारा शरीर आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है, इसलिए इसे चेतन कहते हैं। वैसे ही पानी के जीव पुद्गल और जीव दोनों मिलकर बनते हैं। गुरुदेव ने कहा जहां क्षेत्रपाल प्रसन्न रहते हैं, वहां बारिश अच्छी होती है। जहां पर बारिश के बादल का वायुकाय को स्थिर करने का काम होता हैं, वहां पानी ज्यादा बरसता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा देवलोक के देव मानवलोक में नहीं आने के कई कारण है। जैसे कि देवलोक में खुशनुमा वातावरण होता है और मानव लोग की मलिनता और दुर्गंध उनको रास नहीं आती। देवलोक का अपना विशेष आकर्षण होता है। इसके अलावा देव को बुलाने की अपना पुण्य और शक्ति अपने पास कम है। उन्होंने कहा जाप करने के दो प्रकार होते हैं। पहला प्राण चेतना से जुड़कर और दूसरा मंत्र देवता के चैतन्य को जोड़कर जाप करना। चार धर्म दान, शील, तप और भाव में सबसे सरल भाव धर्म है। अलबत्ता जो सबसे सरल है, वही सबसे कठिन है।
आत्मा से जुड़ने के लिए जाप में शुभभाव से जुड़ना पड़ेगा। जगत में शक्ति सबके पास है लेकिन अविवेक के कारण शक्ति का सही उपयोग नहीं कर पाते। यदि हम एकाग्रता और शुभभाव से नवकार मंत्र का जाप करें तो कुछ भव में मोक्ष हो जाएगा। पुण्य 1% होगा तो चलेगा, लेकिन पुरुषार्थ 99% चाहिए। प्रमाद को लॉकडाउन करने का सबसे श्रेष्ठ साधन है सामायिक। गुरुदेव ने कहा प्राप्ति करने की चिंता मत करो, प्रयास करते रहो। प्राप्ति महत्वपूर्ण नहीं है, प्रयास महत्वपूर्ण है। नारकी में तीन दृष्टि के जीव होते हैं, सम्यकदृष्टि वाले, मिथ्यात्वी दृष्टि वाले और मिश्र दृष्टि वाले। सबसे श्रेष्ठ सम्यकदृष्टि वाले जीव होते हैं। वर्तमान में मानव जीवन में भी ये तीन तरह के जीव मिलेंगे। उन्होंने कहा जगत में असत्य को पहचानना उतना ही जरूरी है, जितना सत्य को।