जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी आदिनाथ भगवान के गुणों का वर्णन करते हुए कहा, परमात्मा मे अनन्त अनन्त गुण होते है वे गुणों के भंडार होते है सच्चे मन से अगर उनके गुणों का वर्णन कर समर्पण कर दिया जाए तो इन्सान जीवन की ऊंचाइयों को छू लेता है! आज का मानव अपने ही अहंकार के चलते अपने आपको ज्यादा ही बुद्धिमान मानकर चलता है उसे ईशवर पर कम अपने आप पर ज्यादा भरोसा रहता है! वह पूर्णतः माता पिता गुरु ईशवर के प्रति समर्पित नहीं हो पाता परिणामत : उसकी सफलता आधी अधूरी रह जाती है!
हमारा जीवन बड़ो के प्रति समर्पित होना चाहिए मुनि जी ने उदाहरण देते हुए कहा वर्तमान मे भगवान राम से भी अधिक हुनमान जी को ज्यादा महत्व दिया जाता है क्योंकि हनुमान जी का सम्पूर्ण जीवन प्रभु राम के चरणों मे समर्पित रहे। दो शब्द सेव्य सेवक हमारे यहाँ प्रचलित रहे है। राम जी सेव्य थे एवं हनुमान सेवक रहे वर्तमान मे हर इंसान सेव्य मालिक स्वामी तो बनना चाहते है! हर कोई मुख्य तो बन जाता, नेता बन जाता किन्तु अनुयायी नहीं बन पाता आज आवश्यकता है सेवक दास अनुयायी बनकर ईशवर के प्रति समर्पणता की!
सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा प्रभु महिमा का वर्णन विवेचन देते हुए भक्त भक्ति भगवान के स्वरूप का विवेचन किया गया। आत्मा ही शुद्धता ग्रहण कर महात्मा एवं परमात्मा दशा को प्राप्त करता है! महामंत्री श्री उमेश जैन द्वारा सूचनाएं प्रदान कर दिनांक 24अक्टूबर को प्रात 9 बजे विशेष आयोजन मे सभी को आमंत्रित किया गया! बाल संस्कार हेतु समस्त बालकों को आमंत्रित किया गया।