Sagevaani.com /चेन्नई: केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर में वरिष्ठ प्राकृत विकास अधिकारी ब्रह्मचारी डॉ. धर्मेन्द्रकुमार जैन शास्त्री का शुक्रवार सुबह साहुकारपेट स्थित स्वाध्याय भवन में आगमन हुआ |
इस पावन प्रसंग पर श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ तमिलनाडु के कार्याध्यक्ष आर. नरेन्द्र कांकरिया और साहित्यकार डॉ. दिलीप धींग ने शॉल,मुक्ताहार और साहित्य प्रदान करके सम्मान किया |
डॉ. दिलीप धींग ने नौ पुस्तकों के लेखक और अनेक पुरस्कारों से सम्मानित डॉ. जैन का परिचय दिया | इस अवसर पर आयोजित स्वाध्याय कक्षा में डॉ. धर्मेन्द्रकुमार जैन ने कहा कि हमें आगम की भाषा प्राकृत को पढ़ना चाहिये | मूल पाठ के स्वाध्याय का विशेष महत्व होता है | स्वाध्याय से पाप का प्रक्षालन होता है | हित- अहित का ज्ञान होता है | पुण्य, संवर और निर्जरा का लाभ मिलता है | डॉ. जैन ने कहा कि प्राकृत सिर्फ आगम की ही भाषा नहीं है, अपितु अनेक विषय प्राकृत में लिखे गये थे | उन्होंने कहा कि वेद में भी प्राकृत के तत्व मिलते हैं | उपस्थित स्वाध्यायीगण ने चर्चा करते हुए संस्कृत-प्राकृत-अर्धमागधी- अपभ्रंश आदि भाषाओं से संबंधित जानकारी प्राप्त की |
श्रावक संघ तमिलनाडु के कार्याध्यक्ष आर नरेन्द्र कांकरिया ने कर्म ग्रंथ भाग एक – कर्म विपाक पुस्तक प्रतियोगिता की जानकारी दी |
इस अवसर पर दीपक श्रीश्रीमाल कांतिलाल तातेड,लीलमचंद बागमार,योगेश श्रीश्रीमाल,रुपराज सेठिया आदि भी स्वाध्याय कक्षा मे उपस्थित थे |