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स्वाध्याय को स्व निरीक्षण एवं स्व चिंतन का मार्ग बताया है: प.पू. सुधा कवर जी मसा

स्वाध्याय को स्व निरीक्षण एवं स्व चिंतन का मार्ग बताया है: प.पू. सुधा कवर जी मसा

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज शनिवार तारीख 24 सितंबर को प.पू. सुधा कवर जी मसा के मुखारविंद से:-उत्तराध्ययन के 29 में सूत्र में स्वाध्याय करने से ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय होता है! स्वाध्याय को स्व निरीक्षण एवं स्व चिंतन का मार्ग बताया है! पहले गुरुकुल में तीन प्रकार की शिक्षा दी जाती थी!

1)सच ही बोलना

2)धर्म का महत्व!

3) स्वाध्याय!

स्वाध्याय करने से मन की एकाग्रता और मन में अच्छे विचारों का संग्रह होता है और आत्मविश्वास बढता है!

श्रमण संघ के प्रथम पटधर आचार्य श्री आत्माराम जी मसा की एक बार कूल्हे की हड्डी टूट गयी और उनके ऑपरेशन का साढ़े 3 घंटे का समय निर्धारित किया गया जिसमें बेहोशी के लिए (anaesthesia) chloroform को सुंघाना जरूरी था! लेकिन आत्माराम जी मसा ने chloroform सूंघने से साफ इनकार कर दिया और डॉक्टर को कह दिया कि वे ऑपरेशन बिना क्लोरोफॉर्म के भी आपरेशन कर सकते हैं! इतने बड़े कूल्हे के ऑपरेशन के समय आत्माराम जी मसा पूरी तरह से स्वाध्याय में तल्लीन हो गए! साढ़े 3 घंटे के बाद डॉक्टरों ने आचार्य श्री को झकझोर कर बताया कि ऑपरेशन हो चुका है!

अचार्य श्री ने फरमाया कि उन्हें तो कुछ भी मालूम नहीं पड़ा! चिकित्सकों ने कहा कि अभी तक ईसा मसीह के बारे में सिर्फ सुना था लेकिन यहां पर प्रत्यक्ष रूप में हम एक महान आत्मा के दर्शन कर रहे हैं!ऑपरेशन की बात छोड़ो एक injection या 1 वैक्सीन लेने में भी लोग घबराते हैं! आत्मा का भोजन स्वाध्याय है और हमारे जीवन में इस का बहुत बड़ा महत्व है! परमात्मा के करीब पहुंचने का आसान जरिया है स्वाध्याय!

प.पू.सुयशा श्री जी म सा कि जिनवाणी एक अद्भुत वाणी है! हमारा धोखा गुस्सा और हमारा छल कपट सामने वाले का बहुत बड़ा नुकसान कर सकता है और उससे से भी बड़ा जिंदगी भर के लिए हमारे प्रति अविश्वास पैदा कर सकता है! छोटी आत्मायें इसे समझती जरूर है लेकिन विश्वास नहीं कर पाती! कुछ आत्मायें तो इसे समझ ही नहीं पाती!

1)कुछ आत्मायें मोम के समान होती है जो बहुत जल्दी पिघलती है! कभी जिंदगी में आगमवाणी सत्संग या व्याख्यान नहीं सुना होगा लेकिन एक बार संपर्क में आते ही संयम स्वीकार कर लेते हैं!

2) कुछ लोग उस “लाख” पदार्थ की तरह होते हैं जो गर्म करने से पिघल जाता है और ठंडा होते ही अपने स्वरूप में आ जाता है यानी कड़क बन जाता हैं! हमारी विचारधारा यह रहती है कि एक पाप करो या ग्यारह, दुर्गति में ही जाना है! इसलिए हम सुन तो लेते हैं लेकिन विश्वास नहीं करते और परवाह भी नहीं करते! हमारे में प्रत्येक व्यक्ति के बुद्धि की सीमाएं अलग-अलग होती है किसी को कुछ भी समझ में ना आए तो इसका मतलब यह नहीं है कि परमात्मा की वाणी गलत है!

हम समझते हैं कि चातुर्मास के 4 महीने में धर्म ध्यान कर लो तो 8 महीने के पाप भी निष्फल हो जाते हैं! कुछ लोग तो सिर्फ 8 दिन के पर्यूषण पर्व को भी ऐसा ही मान लेते हैं! और 8 दिन के बाद वे पहले जैसे ही स्वरुप में आ जाते हैं! कुछ लोग कुछ प्रयत्न करते ही सुधर जाते हैं!

3) कुछ लोग लकड़ी के समान होते हैं! लकड़ी को जलाने के लिए चारों तरफ बार-बार जलाना पड़ता है! ऐसे लोग हादसा होने के बाद कर्म निर्जरा करने के कुछ भी लेनदेन से इंकार कर देते हैं!

4) कुछ लोग मिट्टी के गोले के समान रहते हैं जो कितनी भी मुसीबत में पड़ जाए तो भी नहीं सुधरते बल्कि और ढीठ हो जाते हैं! प्यार से समझाने से या डांटने से भी नहीं सुधरते, जैसे दुर्योधन और उसका स्वभाव था! ऐसे में चाहिए कि हर व्यक्ति अपना आत्म निरीक्षण खुद करें, अच्छे बुरे पर चिंतन करें और अपना नजरिया यानि दृष्टिकोण स्वयं बदले, ताकि जिंदगी को सुधार सके और खुशनुमा बना सके!

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