चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व डॉ.सुप्रभा के सानिध्य में साध्वी डॉ.उदितप्रभा ने कहा कि जैसा व्यवहार हम दूसरों के साथ करते हैं वैसा ही हमारे साथ होता है। दूसरों में स्वयं को देखकर व्यवहार करें। जो दूसरों को कष्ट देता है वह स्वयं भी कष्ट पाता है।
प्रभु कहते हैं कि किसी के द्वारा आपके प्रति किया गया व्यवहार हमारे द्वारा किए गए कृत्यों की ही सौगात है। यह संसार एक सूना जंगल है जिसमें आपके व्यवहार प्रतिध्वनित होकर पुन: तुम्हारे पास लौटते हैं। आदर्श महापुरुषों के जैसा बनना है तो उनके जैसा शांत, शीतल, नम्र और सहनशील बनें।
साध्वी डॉ.हेमप्रभा ने कहा कि प्रभु ने संसार में मनुष्य के चार दुर्लभ अंगों की चर्चा की है। पहला- मानव जन्म दुर्लभ है लेकिन उसमें भी मनुष्यत्व का जन्म होना कठिन है। दूसरा- संतों के दर्शन बहुत पुण्य से ही होते हैं। संत तीर्थ से भी बढक़र होते हैं, उनके दर्शनों का लाभ तुरंत मिलता है। लोक में साधु-संतों के दर्शनों का अवसर अनन्त पुण्यों से मिलता है।
तीसरा- साधु संतों की संगत करना चाहिए। संत-महात्मा चंदन और चंद्रमा से भी ज्यादा शीतलता प्रदान करता है। चौथा- तन से मनुष्य बनें हैं लेकिन अंतरमन से मनुष्य बनें। चिंतन करें कि हमारा नियंत्रण इंद्रियों पर है या हम इंद्रियों के वश में होकर जी रहे हैं। क्रोध, अहंकार, लोभ, स्वार्थ के वश में होकर पशु जैसा व्यवहार करने लगते हैं।
हमारे व्यवहार का स्वीच बोर्ड हमारे पास होना चाहिए। कोई कुछ कह दे तो व्यवहार बदल जाता है। क्रोध, अहंकार, लोभ, स्वार्थ के वश में होकर पशु जैसा व्यवहार करने लगते हैं। हमारे व्यवहार का स्वीचबोर्ड हमारे पास होना चाहिए। कोई कुछ कह दे तो व्यवहार बदल जाता है। हमारी आत्मा अन्तरवृत्तियों ने शक्तिशाली आत्मा को भी दबा रखा है लेकिन आप मनुष्य बन जाएं तो वही आत्मा महात्मा और परमात्मा बन जाए।
एक बार मनुष्य बन जाएं तो परमात्मा बनने में देर नहीं लगेगी। पर्यूषण महापर्व के सात दिन हमें इसी तैयारी के लिए मिलते हैं कि हम संवत्सरी के दिन तक स्वयं को मनुष्य बना सकें। आज अंतिम दिन स्वयं का निरीक्षण, परीक्षण करें, अंतर को टटोलें और स्वयं को बदलें तभी पर्वाधिराज की आराधना सार्थक होगी, आत्मा में अनादीकाल से लगे रोग को मिटाया जा सकेगा।
साध्वी डॉ. इमितप्रभा ने पर्यूषण के अंतिम दिन अंतगड़ सूत्र वाचन किया। उन्होंने कहा कि सुगुरु, सुदेव और सुधर्म के प्रति पूर्ण श्रद्धा, विश्वास होना चाहिए। जब धर्म के प्रति श्रद्धा हो, वहीं से धर्म शुरू होता है।
जिनवाणी एक सर्जन है जो भव-भव के रोग दूर करती है। दर्पण के समान हमारे दाग बताती है, दवा के समान बुराइयों के रोग ठीक करती है और गाड़ी के समान मोक्ष मंजिल पर पहुंचाती है। साध्वी उन्नतिप्रभा ने प्रभु भजन सुनाया।