चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा शरीर के भीतर 72000 नाडियाँ होती हैं किंतु उनमें तीन नाडी तंत्र का बहुत महत्व होता है- सूर्य, चंद्र और सुष्मना।
स्वर जो चलते हैं, उसके अनुरूप कही गई बात का असर पड़ता है । जिस समय सूर्य और चंद्र स्वर का निरोध होकर सूष्मना स्वर चलता है, उस समय जो भी बात कही जाती है वह लगभग शत-प्रतिशत सत्य होती है। इसलिए जब भी कोई बात बोली जाती है तो वह अहितकारी नहीं होनी चाहिए। स्वयं के लिए भी कई गई बुरी बात पुण्य घटाने वाली होती है।
कभी भी कटु वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सामने वाले द्वारा गाली देने पर भी उसे अपने कर्मों का फल मानते हुए शांत रहना चाहिए। ईंट का जवाब पत्थर से देने की नीति के कारण ही झगड़े बढ़ते जाते हैं।
जयपुरंदर मुनि ने कहां महापुरुष अपने जीवन में संघर्ष करते हुए हर परिस्थिति का डटकर सामना करते हैं। विरोध को विनोद समझने वाला ही महापुरुष बन सकता है आचार्य जयमल के जैसलमेर विजय यात्रा का वर्णन करते हुए कहा उन्होंने धर्म का डंका बजाते हुए यतियों से चर्चा कर उन्हें पराजित किया।
आचार्य जयमल के 31वें जन्मोत्सव का पहला दिन 13 सितम्बर को सामूहिक जय जाप के साथ मनाया जाएगा । प्रात: 6 से सायंकाल 7 बजे तक अखंड जाप होगा।