जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने प्रवचन करते हुए भक्ति की तीव्रता का वर्णन करते हुए कहा जब भाव पूर्ण रूपेण शुद्ध होते है तब कई भवों के पाप कर्म भी नष्ट हो जाते है! मानव मन पुण्य के कार्य करने मे आलस्य कर जाता है इसके विपरीत पाप कर्म के लिए सदा तत्पर रहता है! इसी कारण जीवन मे सुख के क्षण भरपूर मात्रा मे रहते है!हमारा किया हुआ पुण्य पाप ही उदय मे आते है हम जैसे बीज बोते है वैसे ही फल प्राप्त होते है! हमारी भावना अनुसार कर्म बंधे चले जाते है! आचर्य मानतुंग जी महाराज ने उदारहण देते हुए कहा रात्रि कालीन घोर अंधकार चारों और छाया हुआ है कुछ भी दिखलाई नहीं देता हो मगर प्रात : कालीन सूर्य की किरणे निकलते ही अंधकार समाप्त हो जाता है!जैन धर्म का मानना है स्वयं किए पाप स्वयं को ही भुगतने पड़ते है! कहा जाता है दुनियां का पाप गंगा मे जाने से गंगा मैली होती जा रही है गंगा जी का पाप समुद्र me जाने से समुद्र खारा हो जाता ऊपर भाप बन कर मेघ राजा के पास जाता पर वर्षा ऋतू आने पर मेघ पुन : जिन घरों का आया हुआ पाप पानी रूप मे पुन : उन घरों मे पहुँच जाता है पाप इतने आसानी से समाप्त नहीं होते उसके लिए तप जप करना आवश्यक है!
सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा भगवान आदि नाथ की भक्ति स्वरूप भक्तामर स्तोत्र का सामूहिक स्वाध्याय किया गया एवं विधि विधान के साथ भक्ति का स्वरूप समझाया गया सभा की और से प्रधान महेश जैन प्रमोद जैन द्वारा आए हुए समाज सेवीओ का हार्दिक अभिन्दन किया गया।