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स्वभाव को समझने वाला आत्मस्वभाव को शीघ्र पाता है: आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी

स्वभाव को समझने वाला आत्मस्वभाव को शीघ्र पाता है: आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी

किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी ने प्रवचन में कहा कि मुनि का अर्थ है मानना और समझना। मुनि जागते हुए अच्छे लगते हैं और अमुनि सोते हुए अच्छे लगते हैं। मुनि वह, जो संसार के स्वभाव को जानता और मानता है, जो परमात्मा की आज्ञा मानता और समझता है।

मुनि संसार के राग- द्वेष के व्यवहार से रहित होते हैं, क्योंकि वे मानते और समझते हैं। संसार और काया को जो समझते हैं, वे आर्तध्यान, मिथ्यादृष्टि और अविरति की तरफ आकर्षित नहीं होते। शरीर व्याधियों का घर है, मन विचारों का घर है। जो शरीर और मन का स्वभाव समझ सकेंगे, आर्तध्यान, मिथ्यादृष्टि, अविरति आदि दूर हो जाएंगे। उन्होंने कहा स्वभाव को समझने वाला आत्मस्वभाव को शीघ्र पाता है और विभाव को समझने वाला विभाव में ही रहता है। आचार्यश्री ने कहा बालक जैसी सरलता गौतम स्वामी के जैसी और यौवन की साधना गजसुकुमाल जैसी होनी चाहिए। हमें उपकार का बदला इस तरह चुकाना चाहिए कि उपकारी को दूसरे का उपकार लेना जरूरी नहीं रहे।

आचार्यश्री ने कहा सम्यक् दर्शन का मतलब गुरु, परमात्मा को देखकर अहोभाव की उच्चता को पा लेना, रोम रोम में आनंद के गुब्बारे छूटने लगना। सम्यक दर्शन के लक्षण यह है कि अपने पापों के याद आते ही आंखों में आंसू आ जाए। गुणवान व्यक्ति के प्रति गुणानुवाद प्रगट हो। किसी वस्तु की प्राप्ति महत्वपूर्ण नहीं है, उसको मेंटेन करना महत्वपूर्ण है। जीवन में दुःखों के काल में निश्चय से विचारना चाहिए, व्यवहार से नहीं। ऐसे समय में श्रद्धा को अल्प नहीं करना। श्रद्धा टिकाने से आत्मा शुभध्यान में रहती है। कहा गया है कि जहां एकांतवाद है, वहां पर संघर्ष रहता ही है। अपराधी के साथ भी प्रेम का व्यवहार करने की कोशिश करना। जो कार्य परमात्मा से नहीं हो सकता, वह किसी से नहीं हो सकता, ऐसा सोचना।

शासन मात्र साधु- साध्वी से नहीं बल्कि श्रावक- श्राविका से भी चलता है। चतुर्विध संघ के लिए चारों का समन्वय होना जरूरी है। यदि काया को माया से मुक्त करा दो तो संसार का भ्रमण रुक जाएगा। जब अपनी आत्मा एक ही चीज में स्थिर हो जाती है, तभी केवलज्ञान आता है। जिस तरह हिलाया हुआ बीज वृक्ष नहीं बन सकता, इसी तरह हिलाडुला मन केवलज्ञान नहीं देता। आचार्यश्री ने बताया कि रविवार प्रातः 222 भद्रतप के तपस्वियों का वधामणा होगा। इस मौके पर तपस्वियों का पचक्खाण और बहुमान समारोह आयोजित होगा। पचक्खाण उत्सव के लाभार्थी गंगादेवी रतनचंद बालगोता परिवार होंगे।

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