जैन भवन रायपुरम में पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि श्रावक श्रविका आंशिक रूप से सावध्य योग का त्याग करते हैं। साधु साध्वी के लिए पूर्ण सावध्य त्याग बताया ! मर्यादा कर गृहस्थी में रहने से सागर जितना पाप एक बूंद जितना बन जाता है! थोडा सा पाप ही लगता है जिससे योग्यता होने पर व्रत से महाव्रत में आ जाता है! प्रशस्त मार्ग के राही बन जाओ। +2 तक पढ़ता है तो स्नातक बनने में उसे कई कठिनाई होती है वैसे ही अनुभव धारण करने से महाव्रत धारण करने का सामर्थ्य प्रकट हो जाता है। कर्मबंध हल्के हो जाते है निकासित कर्मो के बंध से मुक्त हो जाता है। सावध धर्म को प्राप्त करने के लिए व्रतो को धारण करना आवश्यक है यह धर्म तीनों काल में जीव मात्र का कल्याण करने वाला है। अंतिम समय भी सुधारता है! नियमित रूप को धर्म में परिग्रह छोड़ता है उसी का त्याग फलता है! जीवन पर्यन्त अपनी आत्मा को शुद्ध करता है वहीं सम्यक संथारा प्राप्त कर सकता है। यदि परिणाम शुद्ध रहे तो अंतिम समय भी सुधर जाता है। परभव में भी धर्म के प्रति श्रद्धा बनी रहती है। आज का ज्ञान 100 भव तक चलता है यदि बीच में असंज्ञी का भव न आये तो!
ज्ञान को सुई में धागे पिराए हुए की उपमा दी। यदि एक भव बिगड़ जाये तो दूसरा भव सुधर जाता है व्रत प्रत्याखान नहीं लोगे तो महापाप लगता है यदि दोष लग जाय तो पश्चाताप करता है! पश्चाताप से पाप लगता है! और वह पश्चाताप अनेक भवों के कर्मों की सफाई करती है। भोग के आंसू भव बंधन कराते हैं। व्रत लेने से घबराओ मत, आलोचना कर लो। मजबूती आ जायेगी। आराधक बन जाओगे। पांचवा व्रत परिग्रह है जिसे निर्भयता से धारण करो जब तक त्याग करने का सामर्थ्य है तब तक बड़ा दायरा रख लो। और जैसे जैसे फिर दायरा कम कर दो! जैन भवन में 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस आजादी का अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में फेन्सी ड्रस कार्यक्रम आयोजित किया गया। करीब 25 बच्चों ने भाग लिया। सभी को इनाम दिया गया। संचालन धर्मीचंद कोठारी ने किया।