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स्वकल्याण के साथ परकल्याण का प्रयास करते हैं साधुः महातपस्वी महाश्रमण

स्वकल्याण के साथ परकल्याण का प्रयास करते हैं साधुः महातपस्वी महाश्रमण
कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जिस नगरी में प्रतिदिन मेघ बरसते हों, जिस नगरी को फूलों की नगरी की उपमा प्राप्त हो, उस नगरी को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी आध्यात्मिक सुवास से सुवासित कर रहे हैं।
यह सुवास नियमित रूप से श्रीमुख से प्रस्फुटित होता है और इस फूलों की नगरी को सुवासित कर रहे हैं। आचार्यश्री की मंगलवाणी से बिखरने वाली आध्यात्मिक सुवास लोगों का कल्याण करने वाली है। 
बेंगलुरु चतुर्मास के दौरान आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा रचित संस्कृत भाषा के ग्रन्थ ‘सम्बोधि को आधार बनाकर मंगल प्रवचन कर रहे शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर राजगृह की ओर धर्म यात्रा करते हुए पधार रहे थे। इस दौरान वे गांव-गांव में जा रहे थे।
गांव में उनका मंगल प्रवचन करते और लोगों का कल्याण करते हुए आगे गतिमान थे। साधु को ऐसा ही होना चाहिए। साधु अपना कल्याण तो करे ही करे, साधु को दूसरों के कल्याण का भी प्रयास करना चाहिए। साधु खुद तरे और दूसरों को भी तारने का प्रयास करे, उसे मंगल मार्गदर्शन दिखाए। दुनिया में जन्म लेना और मृत्यु को प्राप्त हो जाना तो सामान्य बात है। इस संसार में आकर स्वयं तर जाना और दूसरों को तारने का प्रयास करना, यह खास बात होती है।
भगवान महावीर ने अहिंसा तीर्थ की स्थापना की। भगवान महावीर ने साधु-साध्वी व श्रावक-श्राविका के रूप में चार तीर्थ स्थापित किए। अगर किसी मनुष्य में साधु जितनी साधना-आराधना संभव न हो तो वह श्रावक-श्राविका बनकर पूजा, भक्ति और आराधना कर अपना कुछ तो कल्याण कर ही सकता है। 
साधु को तो चलता-फिरता तीर्थ कहा गया है। सम्बोधि ग्रन्थ के तीसरे श्लोक में कहा गया है कि भगवान महावीर ने अहिंसा तीर्थ की स्थापना की। गांव-गांव की यात्रा के दौरान उनके प्रवचन होते। प्रवचन करना भी तो जन-जन के तारने का प्रयास करना होता है, तो भगवान महावीर जहां भी प्रवचन करते वहां कितने-कितने मनुष्य, देव आदि अन्य प्राणी भी उपस्थित होते और अपना कल्याण करते थे।
इस प्रकार भगवान महावीर राजगृह पधार गए और वहां एक पुरुष साधु रूप में दीक्षित हुआ। उन साधु के साथ जुड़े एक घटना प्रसंग को आचार्यश्री ने सुनाते हुए कहा कि साधु को वैसा सत्य भी नहीं बोलना चाहिए, जिसमें हिंसा संभावित हो। उस दौरान साधु को मौन रह जाना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के दौरान आचार्य महाप्रज्ञजी पर रचित का संगान भी किया। 
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्त्वावधान में तेरापंथ किशोर मण्डल के 14वें अधिवेशन में भाग लेने पहुंचे लगभग 700 से अधिक किशोर विभिन्न राज्यों के परिधान में सजे आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित हुए तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि किशोर समाज की संपदा होते हैं। किशोर एक ऐसी पौध है, जिसे सिंचन मिले तो वह वृक्ष बन सकता है।
आचार्यश्री ने किशारों को शौर्यवान बनने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि बाधाओं से झटपट घबराना नहीं, बल्कि शौर्य पूर्वक उसका सामना करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में नियम और संकल्प आ जाएं, देव, गुरु और धर्म के प्रति आस्था हो और कुछ नियम स्वीकार कर लिए जाएं तो भटकाव कम हो सकता है। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद का संरक्षण किशोरों को प्राप्त है। किशोरों का अच्छा विकास होता रहे और किशोर पच्चीस बोल को भी याद कर लें तो ज्ञान चेतना की बात हो सकती है। 
किशोर मण्डल के राष्ट्रीय प्रभारी श्री अर्पित नाहर ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए अधिवेशन के संदर्भ में जानकारी प्रदान की। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री विमल कटारिया ने अपनी अभिव्यक्ति के दौरान किशोरों को महीने में चार सामायिक का संकल्प स्वीकार करने का आह्वान किया तो आचार्यश्री ने सभी किशोरों को एक वर्ष तक एक महीने में चार सामायिक करने का संकल्प प्रदान किया। साथ ही सभी किशोरों को श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) स्वीकार करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। 
इस कार्यक्रम में दिव्यांगों के लिए कार्य करने वाले डिसेबल वेलफेयर ट्रस्ट के संस्थापक ‘पद्मश्री’ श्री कनू हंसमुखभाई टेलर ने भी आचार्यश्री के दर्शन किए और अपनी भावाभिव्यक्ति श्रीचरणों में समर्पित की। इस दौरान बेंगलुरु किशोर मण्डल के सदस्यों ने अपनी प्रस्तुति दी। टी-दासरहल्ली महिला मण्डल ने गीत का संगान किया। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-बेंगलुरु के महामंत्री श्री दीपचंद नाहर ने भी अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। 

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