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सोई हुई चेतना को जगाने का अनुपम पर्व है दीपावली : देवेंद्रसागरसूरि

सोई हुई चेतना को जगाने का अनुपम पर्व है दीपावली : देवेंद्रसागरसूरि

Sagevaani.com /चेन्नई. श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन मूर्तिपूजक संघ में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने दीपावली पर्व की महत्ता को उजागर करते हुए कहा कि दीपावली भारत का एक ऐसा पवित्र पर्व है, जिसका सम्बन्ध भारतीय संस्कृति की सभी परम्पराओं से है. भारतीय संस्कृति के प्राचीन जैन धर्म में इस पर्व को मनाने के अपने कारण हैं. ईसा से लगभग 527 वर्ष पूर्व कार्त्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के समापन होते ही, अमावस्या के लगभग प्रारम्भ में स्वाति नक्षत्र के दौरान महावीर स्वामी अपने सांसारिक जीवन से मुक्त होकर निर्वाण को प्राप्त हो गए. उस समय इन्द्रादि देवों ने आकर भगवान महावीर के शरीर की पूजा की और पावापुरी नगरी को दीपकों से सजाकर प्रकाशयुक्त कर दियाl

उसी समय से आज तक यही परंपरा जैन धर्म में चली आ रही है. जैन धर्म में प्रतिवर्ष दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है. उन्होंने आगे कहा कि दीपावली का पर्व ज्योति का पर्व है। दीपावली का पर्व पुरुषार्थ का पर्व है। यह आत्म-साक्षात्कार का पर्व है।

यह अपने भीतर सुषुप्त चेतना को जगाने का अनुपम पर्व है। यह हमारे आभामंडल को विशुद्ध और पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संदेश देने का पर्व है।भगवान महावीर ने दीपावली की रात जो उपदेश दिया उसे हम प्रकाश पर्व का श्रेष्ठ संदेश मान सकते हैं। भगवान महावीर की यह शिक्षा मानव मात्र के आंतरिक जगत को आलोकित करने वाली है। यद्यपि लोक मानस में दीपावली एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि जिन ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व की महत्ता जुड़ी है, वे अध्यात्म जगत के शिखर-पुरुष थे।

इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का भी अनूठा पर्व है। दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है कि दीये बाहर के ही नहीं, दीये भीतर के भी जलने चाहिए, क्योंकि दीया कहीं भी जले, उजाला देता है। दीये का संदेश है- हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएं जीवन की सार्थक दिशाएं खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है, जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, दिशाहीन और चरित्रहीन बनकर सफलता की ऊंचाइयों के सपने देखते हैं जबकि दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प है।

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