जय जितेंद्र, कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 25 जुलाई सोमवार, परम पूज्य सुधाकंवर जी मसा के मुखारविंद से:-उत्तराध्ययन सूत्र के 29वें अध्ययन में सेवा का विश्लेषण! सेवा एक पारस मणि है जो जीवन को स्वर्ण मय बनाती है। सेवा एक उज्जवल कर्म है। सेवा करने से ऊर्जा मिलती है। सेवा एक पवित्र अनुष्ठान हैै सेवा धर्म का गहन मर्म बताते हुए कहा कि जो व्यक्ति परमात्मा की स्तुति करता है उससे भी अधिक दीन दुखी अनाथ अपाहिज की सेवा करने वाला महान होता है। सेवा करने सेे तीर्थंकर नाम कर्म का बंध भी होता है। सेवा की शुरुआत सबसे पहले अपने घर से होनी चाहिए, घर में वृद्ध माता-पिता हैं या कोई बीमार है उसकी सेवा करना पहला दायित्व है। उन्होंने आगे बताया कि सेवा वही कर सकता है जो खुद से पहले दूसरों की परवाह करता है। सेवा करने वालों को ही मेवा मिलता है।
प.पू.सुयशा श्रीजी के मुखारविंद से:-बदलते जमाने के साथ बहुत सारी चीजें बदली हैं। कुछ बदलाव हमारे जीवन के लिए अच्छे होते हैं कुछ रूढ़िवादी सोच बदलना आवश्यक होता है, लेकिन कुछ बदलाव हमारे जीवन के लिए हानिकारक होते हैं जो हमारे जीवन में से सुकून को छीन लेते हैं। ऐसा ही कुछ बदलाव हमारी जिंदगी में भी हुए हैं जो कुछ अच्छे हैं लेकिन कुछ बदलाव की वजह से हमारा जीवन बड़ा अशांत हो गया है। इन्हीं में से एक बदलाव है कि हमें प्रसन्न होने के लिए अब दूसरों की आवश्यकता पड़ने लगी है। हमारे चेहरे से मुस्कान धीरे-धीरे गायब होती जा रही है। ना तो हम खुद खुश रह पा रहे हैं और ना ही दूसरों को खुश रख पा रहे हैं। ऐसे में हम हमेशा बाहर कुछ ऐसी चीजें या व्यक्तियों की तलाश में रहते हैं जो हमें कुछ समय की खुशी दे सके। और इसके कारण भी हैं पहला कारण है कि हमारी जिंदगी से संतोष गायब हो गया है। संतोष का अर्थ यह नहीं है कि हम कमाना बंद कर दें या जिंदगी के लिए पुरुषार्थ करना बंद कर दें। संतोष का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि जिंदगी में आगे बढ़ते हुए भी हमारे पास वर्तमान में जो है उसके लिए प्रसन्न रहें। आपको करोड़पति से अरबपति बनना है कोई प्रॉब्लम नहीं है, परंतु आप करोड़पति हैं इस बात के लिए तो खुश रहिए। इस तरह हमारा पूरा ध्यान इस बात पर रहता है कि अब हमें आगे क्या करना है, परंतु जो कुछ हमने प्राप्त कर लिया है उसके लिए तो संतोष धारण करें।
आज की धर्म सभा में श्रीमान अशोक जी तालेड़ा ने 22 उपवास, श्रीमती सुशीला जी बाफना ने 14 उपवास, एवं श्रीमती प्रकाश बाई लालवानी ने 13 उपवास के प्रत्याख्यान किए। इसी के साथ कई धर्म प्रेमी बंधुओं ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। इसी के साथ आज से दोपहर में महिलाओं के लिए छह दिवसीय धार्मिक शिविर प्रारंभ हो चुका है जिसमें बढ़-चढ़कर महिलाएं भाग ले रही हैं।