माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर में ठाणं सूत्र के छठे अध्याय के इकत्तीसवें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि समचतुरस आदि छः संस्थान होते हैं। संस्थान हमारे शरीर की आकृति होते हैं। शरीर का अपना सौंदर्य होता है, शरीर का गठन अलग-अलग होता हैं| कोई लंबा, तो कोई ठिगना, कोई सुंदर और कोई भद्दापन| शरीर के आधार पर व्यक्ति के भाग्य का आंकलन हो सकता हैं| हस्तरेखा और पैर की रेखा से भी भाग्य का आंकलन हो सकता है। कभी-कभी पद चिन्हों को देखकर भी भाग्य का आंकलन हो सकता है। कान कैसे, आँख कैसी, कानों पर बाल आदि आकृति से भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का आंकलन हो सकता है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि गणी संपदा में भी एक शरीर संपदा बताई गई है। शरीर की संपदा में, शरीर की क्षमता व इंद्रियों की सक्षमता भी देखी जाती है।* मनोनयन पर शरीर ठीक हो, साथ में सुंदरता भी वांछनीय हैं। प्रथम दर्शन में चेहरा ही सामने आता है कि सामने वाला कैसा हैं। चेहरे के सौंदर्य का महत्व है, तो चरित्र के सौंदर्य का भी महत्व हैं|
साधना का महत्व है, पर कहीं-कहीं शरीर का सौंदर्य, आंतरिक सौंदर्य भी बता सकता हैं।आदमी को अपेक्षा अनुसार थोड़ा महत्व शरीर को और ज्यादा महत्व साधना को देना चाहिए।* हमारे शरीर की क्षमता ठीक रहे। साधु साध्वी विहार करते हैं, चलते हैं, काम भी करते हैं, उसमें थकान ना आए, सक्षमता रहे।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि शरीर की सुंदरता को महत्व ज्यादा दे और आत्मसाधना को न दे, तो मिथ्या दृष्टिकोण हो सकता हैं। एक कथानक के माध्यम से आचार्य श्री ने बताया कि *आते समय कपड़ों का और जाते समय गुणों का स्वागत होता हैं।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि हमारे साधु, साध्वी व समणीयां हैं, जिनकी दीक्षा हुए 25 वर्ष या कम ज्यादा हुए हैं, सभी ध्यान दें कि मैंने आगम स्वाध्याय किया, कि नहीं। उसमें से कितने पढ़े| *25 वर्ष के दीक्षा पर्याय में एक बार सभी आगमों का स्वाध्याय हो जाना चाहिए।* अगली पच्चीसी में दुबारा आगम स्वाध्याय हो जाए।
आचार्य श्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि मंगलकामना है कि, सभी को दुबारा भी 25 वर्ष आए, चाहे गुरुकुल में हो या बहिर्विहारी हो, सभी साधु साध्वी एवं समणी स्वास्थ्य की अनुकूलता को देखते हुए, जितना हो सके कार्य करें। श्रुत सामायिक हो जाए। आगम स्वाध्याय हो जाए। गुरुकुल में साधु साध्वी सेवा दे रही हैं, समणी भी परिवार का सदस्य है, सेवा दे रही है। समणी का भी महत्व है, पद थोड़ा ऊंचा नीचा हो सकता हैं।
सेवा से नहीं चुराए जी*
आचार्य श्री ने स्वयं की बात बताते हुए कहा कि मैं भी आचार्य महाप्रज्ञजी से नीचे बैठता था। कभी कुर्सी लगती, तो मेरी कुर्सी आचार्यश्री महाप्रज्ञजी से थोड़ी पीछे होती। जिन को आज दीक्षा पर्याय के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं। विगत की समीक्षा करें और अगली पच्चीसी की योजना बनाएं, कि कैसे विकास करना हैं। *कषायों से मुक्त होकर, साधना व सेवा करते रहे।*स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। साधना और सेवा की भावना रहे। सेवा से मेवा मिलता है।* सेवा करणीय है, कर्तव्य है। सेवा और साधना में कंजूसी ना करें। सेवा से जी चुराना, यानी मेवा से भी जी चुराना हैं।* जिसको जो क्षेत्र मिले सेवा का कार्य पूरा करें। आगे बढ़े और जीवन का विकास करते हुए अपनी योग्यता को बढ़ाने का प्रयास करें। ठोकरें लगती है, उदास ना हो और प्रयास करें, वांछित चीज़ मिल सकती हैं।* सेवा से धर्म संघ की प्रभावना करें, स्वयं की गरिमा बढ़ाएं और वीतरागता प्राप्त करने में विकास करते रहे। आचार्य श्री ने साध्वी आरोग्यश्री एवं समणी जगतप्रज्ञा के दीक्षा पर्याय के 25 वर्ष पूरे होने पर मंगल कामना की।
संयम की साधना हैं सुरक्षा कवच : साध्वी प्रमुखाश्री*
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कहा कि जिन भगवान प्रज्ञप्त धर्म अनुत्तर है, उत्कृष्ट होता हैं, उस से बढ़कर कुछ नहीं हैं। हम सौभाग्यशाली हैं कि साधना का अवसर मिला है, तेरापंथ धर्मसंघ मिला हैं| संयम की साधना जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। सुरक्षा कवच हैं।* इसे जो पहन लेता है निश्चिंत हो जाता हैं।
साध्वी आरोग्यश्री एवं समणी जगतप्रज्ञा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी| त्रिदिवसीय ज्ञानशाला प्रशिक्षण सम्मेलन एवं दीक्षांत समारोह के समापन पर उत्तीर्ण ज्ञानशाला प्रशिक्षकों को प्रमाण पत्र एवं मोमेन्टों प्रदान किया गया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया।
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति