चेन्नई. एम.के.बी. नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने शनिवार को कहा कि धर्म में पुरुषार्थ करना बहुत कठिन है क्योंकि संसार में कई ऐसे भी इंसान होते हैं जिन्हें धर्म की जानकारी नहीं होती है और कुछ ऐसे भी जिनको धर्म की जानकारी तो है लेकिन वे अपने तन या मन की दुर्बलता के कारण धर्म में पुरुषार्थ नहीं कर सकते।
बहुत ही विरली आत्माएं होती हैं जो धर्म को जानती भी है और पुरुषार्थ भी करती है। ऐसी आत्माएं ही कर्मों के मैल को जलाकर स्वयं के भीतर ज्ञान की अखंड ज्योति जला सकती हैं। साध्वी ने कहा वैयावच्च यानी सेवा करना व्रतों और तपों में सबसे बड़ा तप है। सेवा धर्म एक ऐसा आभूषण है जिसको अंगीकार करने वाले को परम समभावी और विनयवान बनना आवश्यक है।
साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा त्याग के बिना सच्ची शांति नहीं मिल सकती, क्योंकि जब तक आत्मा पर कर्मों का मल लगा होता है तब तक आत्मा को शांति और अनन्त सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। इन कर्मों की निर्जरा तप, त्याग, व्रत व प्रत्याख्यान के बिना नहीं हो सकती।