वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ सेलम के महावीर भवन में जैन दिवाकर श्री चौथमलजी म सा के प्रपौत्र शिष्य एवं तरुण तपस्वी श्री विमलमुनिजी म सा के सुशिष्य वीरेन्द्रमुनिजी महाराज ने सेलम शंकर नगर स्थित जैन स्थानक में चातुर्मासिक प्रवचन जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आर्य सुधर्मा स्वामी को जम्बूस्वामी वंदन नमस्कार करके दोनों हाथों को जोड़कर दोनों घुटने जमीन पर टिकाकर मस्तक को झुकाकर यानी कि पंचांग नमा कर बड़े ही विनीत भाव से निवेदन कर रहे हैं कि भगवान महावीर स्वामी जो कि मोक्ष में पधार गये हैं।
उन्होंने सुख विपाक में 10 अध्ययन बताये हैं सुबाहुकुमार आदि तो अहो भगवन सुबाहुकुमार कौन थे कहां के रहने वाले थे और उन्होंने क्या किया था जिसके कारण भगवान महावीर स्वामी ने उनकी प्रशंसा की है शास्त्रों में उनका नाम आया। वे कितने पुण्य शाली रहे होंगे कि तीर्थंकर परमात्मा के मुखारविंद से उनकी गुण गौरव गाथा गाई है। जम्बूस्वामी बहुत ही विनीत थे जिससे उनके गुरु सुधर्मा स्वामी प्रसन्न थे, जिससे उनके पृच्छा करने पर सारा ज्ञान देने को आर्य सुधर्मा स्वामी तत्पर थे।
मुनिश्री ने श्रोताओं को सुनाया की शिष्य हो, पुत्र हो, बहू हो ,या मुनीम गुमास्ता हो, अगर इनमें नम्रता सरलता होती है तो गुरु पिता सासु व मालिक प्रसन्न हो जाते हैं अपना सब कुछ दे देते हैं , बेटा आज्ञाकारी होता है तो पिता सारा कारोबार बेटे के हाथों में सौंप करके निश्चित हो जाता है – वैसे बहू आज्ञाकारी व कार्य कुशल होती है तो सासु जी प्रसन्न होकर के सारे घर की चाबियां बहू को सौंप देती है ।
.इसलिये कहते हैं कि बेटियों को बहुओं को गृह कार्य में कुशल होना चाहिये , सासु को मां मानकर के आज्ञा का पालन करें, सारा कार्य समय पर करें जिससे सासूजी प्रसन्न होकर घर की चाबियां बहू के हाथों में सौंप देती है, आदि तीर्थंकर ऋषब देव भगवान ने अपने पुत्रों को 72 कलाएं व पुत्रियों को 64 कलाएं सिखाई जिससे वे हर काम में दक्ष व होशियार होते थे !
आज तो स्थिति है लड़कियों को सिर्फ पढ़ाई और घूमना फिरना गप्पे मारना मोबाइल पर दिन भर बातें करते रहना यही काम रह गया . पहले के माता-पिता अपनी पुत्रियों को घर के हर काम में होशियार करते, जिससे कोई नहीं कह सकते थे लड़की को कुछ भी नहीं सिखाया . बहू सासु को मा समझ कर उनकी बातों को समझ कर काम करती है तो सासु खुश हो जाती है तो घर की चाबियां सब बहू को दे करके निश्चित हो जाती है।
ऐसे ही मुनीम गुमास्ता नौकर चाकर भी अपने मालिक की आज्ञा का पालन करते हैं और सारे कार्य समय करते हैं तभी तो कहते हैं शिष्य पुत्र बहु मुनीम गुमास्ता हो वे विनय करते हैं और बड़ों की आज्ञा का पालन करते हैं तो हमारे माता पिता गुरु मालिक व सासु खुश हो जाते हैं तो अपने पास जो कुछ भी होता सब कुछ दे देते हैं।
आर्य सुधर्मा स्वामी कहते हैं आयुष्यमान – जम्बू श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने सुख विपाक के पहले अध्ययन में सुबाहुकुमार का वर्णन करते हुवे कहा कि इस भारत भूमि में हस्तीशीर्ष नामक नगर था। वह नगर बहुत ही सुंदर था सभी जाति के लोग वहां रहते थे , व्यापारिक क्षेत्र था।
जहां पर सभी देश-विदेश के लोग आकर के व्यापार करते थे, मेहनती परिश्रमी व्यक्ति वहां पर व्यापार धंधे में सफलता प्राप्त करते थे – आलसी व्यक्ति तो जिंदगी में कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता, उस हस्तिशिर्ष नगर के बाहर इंसान कोण में सभी प्रकार के फल फूल आदि के वृक्षों वाला। पुष्प करणडक नामक बगीचा था वहीं पर लोक प्रसिद्ध मान्यता प्राप्त कृतवनमाल प्रिय नाम का यक्ष का यक्षयतन ( मंदिर ) था।