वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ सेलम के महावीर भवन में जैन दिवाकर श्री चौथमलजी म सा के प्रपौत्र शिष्य एवं तरुण तपस्वी श्री विमलमुनिजी म सा के सुशिष्य वीरेन्द्रमुनिजी महाराज ने सेलम शंकर नगर स्थित जैन स्थानक में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृतधारा बह रही है!
जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने भगवान महावीर स्वामी की अमृत वाणी का उपस्थित श्रोताओं को पान करा रहे है कि प्रथम गणधर गौतम स्वामी के पृच्छा करने पर भगवान महावीर स्वामी फरमा रहे हैं कि सुबाहु कुमार ने पूर्व जन्म में सुमुख गाथापति के रुप जो महान तप धारक सुदत्त अणगार को सुपात्र दान देकर के मनुष्य भव प्राप्त किया !
भगवान कहते हैं कि जिस समय सुमुख गाथा पति ने जो दान दिया वह किसी फल की इच्छा ( कामना ) से नहीं परंतु एकांत कर्म निर्जरा के हेतु से दान दिया था ! जैसे ही दान दिया उसी समय पंच दिव्य प्रकट हुवे ( 1 ) देवता गण आसमान में अहो दानम् अहो दानम् की उद्घघोषणा करने लगे और ( 2 ) अचित फूलों की बरसात और ( 3 ) अचित पानी ( प्रासुक जल ) की बरसात होने लगी ( 4 ) वस्त्रों की बरसात ( 5 ) 12 – 11 साढे बारह करोड़ सोनेयो की बरसात हुई इस प्रकार सुपात्र दान से पंच दिव्य प्रकट होते थे !
सुमुख गाथा पति के दान देने की चर्चा घर-घर गली गली मोहल्ले में हर जगह जहां एक रास्ता दो रास्ते मिलते हैं तीन रास्ते चार रास्ते पांच रास्ते जहां मिलते वहां पर आपस में एक ही चर्चा – आपने सुना क्या ? सुमुख गाथा पति ने अपने हाथों से सुपात्र दान देकर अपने जीवन को धन्य बना दिया धन्य है धन्य है – ऐसे सुपात्र दान देने वाले को और लेने वाला भी धन्य है !
इस प्रकार हे गौतम – उस सुमुख गाथा पति ने सुपात्र दान देकर मनुष्य के भव का बंध किया वही सुमुख गाथा पति अपनी सैकंडो वर्ष की आयु को भोग करके काल के समय काल करके हस्तीशीर्ष नगर के राजा अदिनशत्रु राजा की रानी धारिणी के गर्भ में अवतरन हुआ अर्थात जन्म लिया , जन्म से पहले माता को चौदह स्वप्न में से एक स्वप्न आता हैं !
नव हाथ लंबा केशरी सिंह देखा यह वर्णन पहले बता दिया गया है ! नो महीने पूर्ण होने पर धारिणी रानी ने एक सुकुमार को जन्म दिया वही सुबाहुकुमार है , पूर्वजन्म में उत्कृष्ट भावों के साथ जो तपस्वी मुनि को सुपात्र दान दिया जिससे यहां पर मानवोचित सुख संपत्ति और शरीर की सुंदरता लावण्यता प्राप्त हुई है!