*विंशत्यधिकं शतम्*
*📚💎📚श्रुतप्रसादम्*
🪔
*तत्त्वचिंतन:*
*मार्गस्थ कृपानिधि*
*सूरि जयन्तसेन चरणरज*
मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.
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*सुशिष्य के लक्षण:*
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*जो विनयावनत हो…*
अर्थात
गुरु के सामने
सदैव विनम्रता पूर्वक रहें,
अहंकार से सिर ऊंचा न करें
विनयपूर्वक मस्तक झुकाकर रहे..
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*जो कृतपांजली हो..*
अर्थात
गुरु कुछ पूछे
कोई बात कहे या बुलाए
तब गुरु की आवाज सुनकर
अविलंब उपस्थित होना और
अंजली जोड़कर कर खड़े रहना,
आज्ञा प्राप्त करने उत्साही रहना.!
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*जो छंदानुवर्ती हो…*
अर्थात
जो कार्य
गुरु को सम्मत हो
उसमें विश्वास करना..
उस कार्य का समर्थन करना..
वही कार्य करना एवं करवाना…!
🤔
इससे विपरित
जो स्वछंद हो,
मन चाहा निर्णय करता हो,
गुरु की बात अनसुनी करता हो,
अप्रिती वैसा कार्य करता हो,
गुरुविरुद्ध प्रवृत्ति प्रचार करता हो
गुरुसे ऊपर उठने की
मनसा रखता हो..
अंतर से विनय बहुमान हीन हो..
ऐसे शिष्य को क्या कहेंगे.?
सुज्ञ स्वयं निर्णय करें.!
*📚श्रीविशेषावश्यक भाष्य*