चेन्नई. अंबत्तूर जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा संसार दुखभरा है। यहां जितने भी सुख हैं वे क्षणिक, नश्वर और क्षणभंगुर हैं। संसार में सुख खोजने वाले को वास्तव में दुख ही मिलते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि संसार में सुख चार हंै तो दुख हजार। व्यक्ति रात दिन सुख की प्राप्ति के लिए दौड़ लगाता है जबकि वो उसके पास टिकता नहीं है।
जितनी भी सुविधाएं है कोई न कोई दुविधा उत्पन्न करती हैं। उन्होंने जन्म, मरण, रोग और बुढ़ापे को दुखदाई बताया। जन्म के समय साढ़े तीन करोड़ रोमावलियों में सूई चुभने से भी ज्यादा पीड़ा होती है लेकिन वो नवजात शिशु नहीं बता सकता। मृत्यु के समय, जन्म से भी अधिक वेदना सहनी पड़ती है। शरीर रोगों का घर है।
बुढ़ापे में इंद्रियों के शिथिल होने से असह्य पीड़ा झेलना पड़ती है। धर्म ही एकमात्र उपाय है जो इन सब से छुटकारा दिला सकता है और शाश्वत सुख दिलवा सकता है। संसार के दुखभरे स्वरूप को जानने वाला व्यक्ति मानसिक संतुलन रखते हुए दुख के वातावरण में सुखी रह सकता है। सुख धन से नहीं मन से प्राप्त होता है।
व्यक्ति पैसा, पत्नी, पुत्र, पद में सुख मानता है। ये सब अस्थायी होते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से प्रवचन, प्रत्याख्यान, प्रतिक्रमण, पौषध की आराधना करने वाले ही सच्चे सुख के अधिकारी बनते हंै।
सुख बेचने या खरीदने की चीज नहीं है यह अनुभव करने के लिए होता है। इस अवसर पर जयकलशमुनि ने गीत का संज्ञान किया। संचालन संघ मंत्री गौतमचंद गादिया ने किया।