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सुख दो प्रकार का होता है: तप चक्रेश्वरी अरुण प्रभा जी मसा

सुख दो प्रकार का होता है: तप चक्रेश्वरी अरुण प्रभा जी मसा

भगवान महावीर से गौतम स्वामी ने प्रश्न किया की इस लोक में बेन्द्रीय से पंचेन्द्रिय तक, मनुष्य, देवता और नारकीय सभी एक ही चाह रखते है, सभी सुख की कामना करते है । सुख पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाते है, न खाने का ध्यान न पीने का न परिवार का ध्यान है भगवन यह सुख कितने प्रकार का होता है। भगवान महावीर ने फरमाया सुख दो प्रकार का होता है। भौतिक सुख और आध्यात्मिक सुख। भौतिक सुख पानी के बुलबुले के समान है । इंसान सोचता है की उसे घर परिवार में पति/पत्नि में, बच्चों में, सगे सम्बन्धियों में, व्यापार में सुख मिल जाए ये जो सुख है वो सुख नही सुख का आभास है। सुख कँहा है धर्म स्थान में, दुकान पर, घर पर, सुख कँही बाहर नही है सुख हमारी आत्मा में है।

अगर आपकी सुई घर में खो जाए और घर में अँधेरा हो तो आप बाहर आकर रोशनी में उस सुई को कितना भी खोज लो वो सुई मिलने वाली नही है। वैसे ही भौतिक सुख घर परिवार, रिश्तों में व्यापार में खोजते है, लेकिन सुख तो हमारे भीतर ही है। साधारण मानव की बात छोड़ दे तो चक्रवर्ती भी सुखी नही है। भौतिक सुख हमारी आत्मा को पतन की और ले जाने वाला है। गौतम स्वामी ने अगला प्रश्न किया सुख की जातियां कितनी प्रकार की होती है। प्रभु ने फरमाया सुख की तीन जातियां है सुख महासुख परम सुख। इन तीनों में क्या अंतर है ये आगे समय आने पर पता चलेगा। शतावधानी पूज्याश्री गुरु कीर्ति ने मरिची के पास कोई भी शिष्य बनने आता तो वो उसे यही कहते की सच्चा धर्म आदिनाथ के पास है उनके शिष्य बनो, इस तरह समय बितता गया। एक बार मरिची बीमार हुआ, उसकी देखभाल करने वाला कोई नही था, उस वक्त उसे महसुस हुआ की उसे भी अपना शिष्य बनाना है। अभाव में या तो साधना कमजोर हो जाती है या और मजबूत हो जाती है, मरिची की साधना अभाव की वजह से कमजोर हो गई।

शिष्य बनाना आसान नही है, घण्टो घण्टो तक शिष्य को समझाना पड़ता है, और आजकल कोई ज्यादा देर तक सन्त सतियों के पास बैठ जाए तो लोग बातें करने लग जाते है, परिवार को बताते है की सम्भाल लो कँही ये दिक्षा न ले ले, या महाराज इसको दिक्षा न दे दे। एक राजकुमार कपिल मरिची के पास आया तो मरिची ने कहा सच्चा धर्म अंदर है वँहा जाओ, कपिल राजकुमार अंदर गया वँहा देखो भगवान के 84 गणधर और अनेक शिष्य बैठे थे, कपिल सोचता है पता नही मेरा नम्बर कब आएगा, मैं तो राजकुमार हुँ कब तक इंतजार करूँ। कपिल फिर बाहर आता है और मरिची से प्रश्न पूछता है की क्या आपका धर्म धर्म नही है, आपकी साधना साधना नही है, अब मरिची क्या गलती करेगा वह अपने नयसार के भव में दो गलती अपनी कला का अभिमान और कलाप्रमुख से पूछा नही कर चुका है। इस जन्म में भी कपिल दो गलती कर चुका है, भगवान से पूछा नही और अपना मार्ग बना लिया एंव अपने कुल का अभिमान किया। अब कपिल तीसरी गलती क्या करेगा और इस गलती का उसे क्या परिणाम भुगतना पड़ेगा यह आगे सुनने पर पता चलेगा।

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