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सुख दुख हंसी खुशी हमारे अंदर है या बाहर.

सुख दुख हंसी खुशी हमारे अंदर है या बाहर.

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज ता: 15 जुलाई शुक्रवार, सुयशा श्रीजी मसा के मुखारविंद से:

 

हमें एक करोड़ की लॉटरी लगी है तो हम खुशी से फूले नहीं समायेंगे, अपने दोस्त नाते रिश्तेदारों को बताएंगे और कार, बंगला रिनोवेशन, पढ़ाई लिखाई के बारे में सोचेंगे हमें नींद भी नहीं आएगी! यह प्रकृति का नियम है कि अगर अधिक खुशी हो या अधिक दुख तो नींद नहीं आती! दूसरे दिन अगर वही न्यूज़पेपर में यह आ जाए कि कल के नंबर में थोड़ा सा करेक्शन है, और आखिरी नंबर दो नहीं चार है, हमारी सारी खुशियां फैल हो जाएगी और हम अत्यंत दुखी हो जाएंगे! हमारी स्थिति कल जैसे ही थी लेकिन एक समाचार ने हमें बहुत सारी खुशियां दें दी और एक समाचार ने हमें बहुत दुखी कर दिया! हमारे पास 1 दिन मोबाइल नहीं है तो भी हम परेशान हो जाते हैं!

दृष्टांत:- एक सम्राट ने वृद्ध सन्यासी से (पुरोहित या intellectual) पूछा कि हमारे जीवन में सुख दुख का सत्य और तथ्य क्या है..? वृद्ध संन्यासी ने एक तावीॹ दिया और कहा कि जब कभी लगे कि जीवन का अंत ( dead end) आ गया तब खोलना! अपने उतावले पन के कारण अगर लिफाफा खोल दिया तो इसकी शक्ति नष्ट हो जाएगी! एक दिन पड़ोसी राजा ने आक्रमण कर दिया और सम्राट बचते बचाते एक जंगल में चारों तरफ से दुश्मनों से घिर गया, तब सम्राट ने वह तावीज खोलकर देखा तो उसमें सिर्फ यही लिखा था “यह समय भी बीत जाएगा” कहने का मतलब है कि अच्छा समय बीत गया तो बुरा समय भी बीत जएगा! हर पतझड़ के पीछे नया साल आएगा और हर सतगुरु की वाणी हमारा जीवन महकायेगा! ऑफिस से घर आए, रसोई मालूम है, मटकी मालूम है, गिलास भी है लेकिन हम किसी और पर निर्भर रहते हैं पानी पीने के लिए!

यही है सुख और दुख का कारण है एक फोन की घंटी हमें सुखी या दुखी बना देती है! अपने पुण्य से मिली खुशी का अधिकार दूसरों को मत दीजिए। अपने सुख दुख पर अपना नियंत्रण रखें दूसरों को हावी न होने दें, यह switch दूसरों के हाथ में नहीं होना चाहिए!

सुधा कंवर जी मसा ने समझाया कि प्रतिदिन जिनवाणी श्रवण करने का महत्व क्या है..? जिनवाणी श्रवण करने से कर्म की निर्जरा होती है! जिनवाणी चंडकौशिक जैसे पापी को पुण्य शाली बना देता है! एक समय पर एक ही काम होता है वैसे ही एक ही ध्यान होना चाहिए! प्रवचन सुने या माला फेरे या सामायिक करें या और कुछ, लेकिन एकाग्रता का होना बहुत जरूरी है। दृष्टांत:-एक सेठानी जी के बहुत समझाने पर एक दिन सेठ जी प्रवचन सुनने गए! सेठानी ने इशारा कर दिया संतो को कि यही श्रावकजी हैै। संत ने सेठ जी से कहा “आ गए हो आ जाओ! “सेठ जी बैठने लगे तो संत ने कहा, “बैठ रहे हो बैठ जाओ”! “अंत में सेठ जाने लगे तो संत ने कहा “जा रहे हो, चले जाओ!”

सेठ को बडा विचित्र लगा और रात को नींद में इसी उधेड़बुन में रहा! संयोगवश उसी रात सेठ जी के घर में चोर आ गए उस समय सेठ बुदबुदा रहा था “आ गए हो आ जाओ”! चोर छुप कर बैठ गए, सेठ बुदबुदाया बैठ रहे हो, बैठ जाओ! चोर डर गए और जाने लगे तो सेठ फिर बुदबुदाया “जा रहे हो चले जाओ!” सुबह पता चला रात्रि में चोर आए और सेठ जी ने वे मात्र 6 शब्द दोहराए जो संतों ने कहा था उससे चमत्कार हो गया! पूरी जिनवाणी सुनते तो कितना उद्धार होता..?जिनवाणी हमारे जीवन को हमारे भव को तिराने वाली है!*आज इस प्रांगण में तपस्या में अशोकजी तालेड़ा ने 12उपवास के प्रथियाखान लिए 3उपवासके4पचकान और अनेकों के तपस्या के पचकान हुए खूब थाट bat है तपस्या के गुरु देव की कृपा से

*🙏जय जिनेंद्र!*

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