चेन्नई. रायपुरम स्थित सुमतिनाथ जैन भवन में विराजित आचार्य मुक्तिप्रभ सूरी के सान्निध्य में सोमवार को प्रतिक्रमण पुस्तक का विमोचन हुआ। इस मौके पर आचार्य विनीतप्रभ सूरी ने कहा स्वर्ग और नरक दोनों इसी धरती की दो दिशाएं हैं-एक ऊपर की और दूसरी नीचे की।
एक उत्थान की तो दूसरी पतन की। एक में सुख मिलता है तो दूसरी में दुख। एक में उपहार मिलता है तो दूसरे में मार। एक पुण्य से तो दूसरा पाप से मिलती है। पुण्य फल स्वर्ग में जाकर भोगा जाता है तो पाप का फल नरक में जाकर भोगना पड़ता है। मजे की बात यह है कि स्वर्ग और नरक गति जीव को अपने शुभाशुभ कर्मों के कारण मिलती है।
विडम्बना है कि पाप करता है मानव और दोषी ठहराता है भगवान को। पहले तो यह तय करना होगा सुख और दुख की वजह क्या है। वजह पता चले बिना हमें सुख-दुख का समाधान कैसे हो सकता है। हम यहां केवल सुख व दुख का अंदाजा ही लगाते हैं।
विदुर नीति में कहा गया है कि जिस घर में आय, अरोग, अक्लेश, प्रियवादी पुत्र माता-पिता के अनुगामी हो एवं घर के सभी कर्मठ हों ये छह बातें होती हैं उस घर में सुख है।
दुख उस घर में होता है जिसमें ईष्र्या, घृणा, असंतुष्टि, क्रोधीपन, शंकाशील एवं अन्य के भाग्य जीने वाले आदि होते हैं। सद्चरित्र और सज्जन व्यक्ति जिसे किसी प्रकार की मूच्र्छा नहीं वह सुखी है। उसे इष्टफल की प्राप्ति होती है।