आचार्यश्री ने किया चातुर्मास परिवर्तन विहार
बेंगलुरु। युवाओं के लिए आयोजित ह्रदय परिवर्तन शिविर में शांति से मुक्ति की और विषय के ऊपर आचार्यश्री देवेंद्रसागरजी ने बुधवार को अपने विचार रखते हुए कहा कि हमारे पास दुनिया का पूरा वैभव और सुख-साधन उपलब्ध है परंतु शांति नहीं है तो हम भी आम आदमी की तरह ही हैं।
संसार में मनुष्यों द्वारा जितने भी कार्य अथवा उद्यम किए जा रहे हैं सबका एक ही उद्देश्य है ‘शांति’। उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो हमें ये जान लेना चाहिए कि शांति क्या है?
शांति का केवल अर्थ यह नहीं कि केवल मुख से चुप रहें अपितु मन का चुप रहना ही सच्ची सुख-शांति का आधार है। आचार्य श्री बोले, जहाँ शांति है वहाँ सुख है। अर्थात सुख का शांति से गहरा नाता है। लड़ाई, दुख और लालच को भंग करने के लिए शांति सशक्त औजार है।
उन्होंने ये भी कहा कि धन-दौलत और संपदा से संसाधन खरीदे जा सकते हैं परंतु शांति नहीं। खुशहाल पारिवारिक जीवन के लिए शांतिमय वातावरण को ज़रुरी बताते हुए देवेंद्रसागरजी ने कहा कि जहाँ शांति है वहाँ विकास है। जहाँ विकास है वहाँ सुख है। इसलिए अमूल्य शांति के लिए सबसे पहले हमें अपने आप को देखना होगा।
अपने बारे में जानना होगा। मैं कौन हूं, कहाँ से आया हूं और हमारे अंदर कौन-कौन सी शक्तियाँ हैं जो हम अपने अंदर ही प्राप्त कर सकते हैं। शांति का सागर परमात्मा है। हम आत्माएँ परमात्मा की संतान हैं। जब हमारे अंदर शांति आएगी तो हमारा विकास होगा। जब विकास होगा तो वहाँ सुख का साम्राज्य होगा। यह प्रक्रिया बिल्कुल सरल और सहज है जिसके जरिए हम यह जान और पहचान सकते हैं।
वर्तमान समय अशांति और दुख के भयानक दौर से गुजर रहा है। ऐसे में जरूरत है कि हम अपने धर्म और शाश्वत सत्य को स्वीकारते हुए शांति के सागर परमात्मा से अपने तार जोड़ें। ताकि हमारे भीतर शांति का खजाना मिले। इससे हमारे अंदर शांति तो आएगी ही साथ ही हम दूसरों को भी शांति प्रदान कर सकेंगे।