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सुखी बनने के सद आचरण को अपनाना चाहिए: जयतिलक मुनिजी

सुखी बनने के सद आचरण को अपनाना चाहिए: जयतिलक मुनिजी

नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्मबधुओ घर के बड़ों की आज्ञा पालन करने से घर में शान्ति रहती हैl उसी प्रकार अपने गुरु की आज्ञा को तहती बोल कर स्वीकार करने से गुरु के हृदय में भी शान्ति समाधि बनी रहती है।

समय – 2 पर गुरु को अपने शिष्य को निर्देश देना पड़ता है यदि उन निर्देशों को पालन कर लिया जाये तो सभी प्रकार के क्लेश शान्त हो जाते है। इंगित इशारे को समझने वाला शिष्य विनीत कहलाता है। जो इशारे को न समझे, जिसे बार बार निर्देश देना पड़े वह अविनीत शिष्य कहलाता है।

जिस घर में निर्देश और आज्ञा का पालन होता है वहाँ क्लेश की सम्भावना नहीं रहती। सुखी बनने के सद आचरण को अपनाना चाहिए। आवश्यक के अनुसार, आगम सिद्धान्त के अनुसार मर्यादित वचन बोलने से हिसां की सम्भावना नहीं होती। विनीत व्यक्ति सभी का प्रिय होता है उसके अपने निकट रखना चाहते है। गुरु के द्वारा सिखाये गये अनुशासन को बुद्धिमान व्यक्ति स्वीकार करता है मानव को स्वयं को अनुशासन में रहना अवश्य आना चाहिए।

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