मुनिश्री ने घर को ही मन्दिर बनाने के दिये सूत्र
माधावरम्, चेन्नई 10.07.2022 ; घर ही इंसान का पहला मन्दिर है, तीर्थ है, गंगा है, पाठशाला है। जहां शान्ति, सहजता, सह्दयता, आनन्द का अनुभव होता है, वह घर मन्दिर होता है। उपरोक्त विचार जय समवसरण, जैन तेरापंथ नगर, माधावरम्, चेन्नई में “घर को बनाएं मन्दिर” व्याख्यानमाला में मुनि सुधाकर ने कहें।
चातुर्मास्य प्रवेश के बाद प्रथम, रविवारीय प्रवचन में उपस्थित विशाल जनमेदनी को सम्बोधित करते हुए मुनिश्री ने कहा कि धर्म की शुरुआत किसी मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, धर्म स्थान की जगह, अपने स्वयं के घर से हो। आगे स्वर्ग या नरक है, उसके चिन्तन की अपेक्षा भाई-भाई, सास-बहू, देरानी-जेठानी इत्यादि परिवार के सदस्यों के बीच आपसी सौहार्द है, अपनत्व है, मैत्रीपूर्ण व्यवहार है, वह घर ही स्वर्ग के समान है। जहां दूराव, टकराव, मन-मुटाव हो, वह घर नरक के समान होता है। सुखी परिवार ही सुखी जीवन का आधार है।
प्रेम बने जीवन का आधार
मुनिश्री ने कहा कि राम के समय मर्यादा, महावीर के समय अहिंसा की जरूरत थी, पर वर्तमान में प्रेम की जरूरत है। प्रेम ही धर्म बने, ग्रंथ बने, जीवन का आधार बने। जिस घर में प्रेम-मोहब्बत होती है, वहां दौलत और शोहरत का वास होता है। वह घर ही भरत चक्रवर्ती के घर की तरह मोक्ष का धाम बन जाता है।
जहां सम्प है, वहां सम्पत्ति हैं
पंचसूत्रीय घर को मन्दिर बनाने के सूत्रों का प्रतिपादन करते हुए मुनि श्री ने कहा कि परिवार के सदस्य एक दूसरे के कार्यो में सहभागी बने, सहयोगी बने, हाथ बढ़ाये, काम बंटायें। एक-दूसरे की प्रसन्नता में खुद की प्रसन्नता माने। दूसरे सूत्र में कहा परिवार के सदस्य संगठन में रहे, सम्मान करें तो दूसरे कोई भी बाल भी बांका नहीं कर सकते। क्या तेरा, क्या मेरा, यह दुनिया रेन बसेरा को आत्मसात करते हुए तीसरे सूत्र में त्याग के लिए तैयार रहने की प्रेरणा दी। चौथे सूत्र में बताया कि जहां सम्प है, वहां सम्पत्ति हैं। मन्दिर में माँ को चुन्दड़ी ओढ़ाने, भगवान को भोग लगाने से पहले, अपने माता-पिता, सास-ससुर, भाई-बहन का आदर-सम्मान करना चाहिए। प्रेम, सहयोग, सम्प से रहने से, लक्ष्मी का वास होता है।
पांचवें और अति महत्वपूर्ण सूत्र के साथ विशेष पाथेय प्रदान करते हुए मुनि श्री ने कहा कि स्वच्छता है मन्दिर का सौपान। जिस घर के छत या तलघर में अटाला, कबाड़ पड़ा रहता है, वह सबसे बड़ा वास्तु दोष का कारण बनता है। अशांति का कारण बनता है। अहिंसा की दृष्टि से जीवों की उत्पत्ति का कारण बनता है।
मुनि नरेशकुमार ने कहा कि धर्म को जीवन का सर्वस्व माने, धन से अधिक धर्म को महत्व दें, धर्म जीवन का प्राण है, त्राण है। कोयंबटूर से समागम प्रणव बोहरा ने पदम प्रभु चौबीसी के गीत का संगान किया। राजलदेसर से पधारे मुनिश्री के न्यातीले जीवनमल वैद परिवार का जैन श्वेताम्बर तेरापंथ माधावरम् ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी घीसूलाल बोहरा ने सम्मान किया।सुरेश रांका ने आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी। इस अवसर पर तमिलनाडु सरकार अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य प्यारेलाल पितलिया, तेरापंथ सभा अध्यक्ष उगमराज सांड इत्यादि गणमान्य व्यक्तित्व उपस्थित थे। उपरोक्त जानकारी मीडिया प्रभारी स्वरूप चन्द दाँती ने दी।
मीडिया प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ ट्रस्ट, माधावरम्
सहमंत्री
अणुव्रत समिति, चेन्नई