किलपॉक श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में विराजित उपाध्यायश्री युगप्रभविजयजी की निश्रा में रविवार को सीमंधर स्वामी की भावयात्रा आयोजित हुई। इस दौरान उपाध्यायश्री ने कहा कि सीमंधार स्वामी महाविदेह क्षेत्र में जीवों का कल्याण तो करते ही हैं, हमारे लिए भी परम उपकारी है। सीमंधर स्वामी का भरत क्षेत्र के जीवों के प्रति भी ऋणानुबंध है। हम समझते हैं कि महाविदेह क्षेत्र की आत्माएं भाग्यशाली है कि उनको तीर्थंकर सीमंधर स्वामी का सानिध्य मिला है। सीमंधर स्वामी समवशरण से भरत क्षेत्र की आत्माओं का भी धन्यवाद करते हैं। भरत क्षेत्र में रहे हुए तीर्थों का वर्णन करते हैं। तीर्थ भूमि समझकर भरत क्षेत्र की प्रशंसा करते हैं।
उन्होंने कहा कि भरत क्षेत्र में रहे हुए लोगों ने उस तीर्थ की यात्रा कभी नहीं की हुई है। लेकिन सीमंधर स्वामी शत्रुंजय तीर्थ का वर्णन समवशरण में करते हैं। जिन लोगों ने शत्रुंजय तीर्थ यात्रा नहीं की, हमें उनकी यात्रा कराने का संकल्प लेना चाहिए। आज हमारा सौभाग्य है कि हमें कल्याणक रुपी तीर्थ मिले हैं। संकल्प लेना है कि तीर्थंकर के कल्याणक तीर्थों की यात्रा करनी है।
उन्होंने कहा कि आप आज महाविदेह क्षेत्र की भावयात्रा करने आए हैं। लेकिन भरतक्षेत्र कल्याणक तीर्थों की यात्रा संपन्न नहीं की। दीक्षा के पश्चात् साधु- साध्वी को ईशान कोण में बैठकर सीमंधर स्वामी का जाप करना बताया है। मुनिसुव्रत स्वामी के शासनकाल में सीमंधर स्वामी की दीक्षा और केवलज्ञान हुआ। मन में समता का परिणाम रखें तो अंतिम परिणाम अच्छा होता है। संसार में कोई मंगल कार्य करने से भाव के साथ स्नात्र पूजा करनी चाहिए। इससे अनेक विघ्न दूर होते हैं और मंगल कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं।
उन्होंने बताया कि रामायण व श्रीपाल- मैनासुंदरी के जीवन की घटनाएं तीर्थंकर मुनिसुव्रतस्वामी के शासन में हुई। व्यक्ति परमात्मा के चरणों में शीश झुकाता है तो उसका जीवन चंवर की तरह उज्जवल बनेगा। भरूच मुनिसुव्रत स्वामी मंदिर को प्रायश्चित तीर्थ कहा गया है। वहां मुनिसुव्रत परमात्मा ने स्वयं आकर अश्व को प्रतिबोधित किया था। कई पूर्व आचार्यों ने अश्व प्रतिबोध तीर्थ पर आराधना की। सीमंधर स्वामी की आराधना करने से भव परिपक्व होता है। उनका एक लाख जाप परिपूर्ण करने पर अगला भव महाविदेह क्षेत्र में मिलता है।