*विंशत्यधिकं शतम्*
*📚💎📚श्रुतप्रसादम्*
🪔
*तत्त्वचिंतन:*
*मार्गस्थ कृपानिधि*
*सूरि जयन्तसेन चरणरज*
मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.
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✒️
सिर्फ
माहिती
प्राप्त कर लेना
ज्ञान नहीं कहा जाता..
🖋️
मात्र
ज्ञानावरणीय के
क्षयोपशम से प्रात ज्ञान
हितकारी नहीं बन सकता..
🪔
*ज्ञानावरणीय+मोहनीय के*
*क्षयोपशम से प्राप्त*
*ज्ञान से ही हेय*
*उपादेय का*
*बोध एवं*
*तदनुसार*
*यथासंभव*
*आचरण होता है…*
🌷
ऐसे परिणत
ज्ञानसंपन्न ज्ञानी को
नवीन कर्म बंध नहीं होता
क्योंकि वह बंध के
निमित्तो से सावधान रहता हैं.!
*📚श्री दशवैकालिक नियुक्ति*