कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 15 अगस्त सोमवार को प.पू. सुधा कंवर जी म सा ने महाप्रभू महावीर की मंगलमयी वाणी का उद्बोधन करते हुये फरमाया! साध्वी जी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि सैकड़ों वर्षो की दास्तां एवं पराधीनता से भारत देश को आज ही मुक्ति मिली थी इस देश को आजादी दिलाने में कितने ही व्यक्तियों ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। देश पर मर मिटने वाले अमर शहीदों के रक्त से सींची हुई स्वतंत्रता की वल्लरी में आज ही के दिन पुष्प खिले थे। कितने वर्षों की तपस्या के बाद स्वतंत्रता मिली थी। इस आजादी के लिए न जाने कितने बालक बालिकाएं अनाथ हुए, कितनी ही नारियों का सिंदूर पोंछा गया, परिवार के परिवार नष्ट हो गए। परंतु अंत में तपस्या सफल हुई। श्रीमती मनीषा जी लूंकड धर्मपत्नी श्रीमान उत्तम जी लूंकड के मासखमण के तप अभिनंदन के उपलक्ष में फरमाया कि तप जैन दर्शन का प्राण है। कर्म निर्जरा का सर्वोत्तम साधन है। अनंत पुण्यशाली आत्मा को ही सौभाग्य मिलता है अपने जीवन में तप को अंगीकार करने का।
सुयशा श्रीजी के मुखारविंद से:-हमारे देश को तो स्वतंत्रता मिल गई परंतु हम अभी भी मानसिक परतंत्रता में जी रहे हैं। इंडिपेंडेंट का मतलब होता है आत्मनिर्भर होना। किसी भी चीज के लिए अन्य किसी भी व्यक्ति – वस्तु पर निर्भर ना होना। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम सही मायने में इंडिपेंडेंट है? नहीं। हम अपनी प्रसन्नता के लिए अपने सुखों के लिए अपने विचारों के लिए दूसरों पर निर्भर है। और जब तक यह निर्भरता रहेगी हम भौतिक रूप से तो स्वतंत्र हो जाएंगे, परंतु मानसिक रुप से हमेशा गुलाम ही रह जाएंगे।
आज के दिन हम कहते हैं कि हमें अपने देश से प्रेम है। परंतु देश से प्रेम सिर्फ स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस पर ही नहीं अपितु हर क्षण होना चाहिए। कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों ने निस्वार्थ भाव से अपने प्राणों का हंसते-हंसते बलिदान दे दिया ताकि हम इस आजाद भारत में सांस ले सकें। उन स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति जितना कृतज्ञ हो सके उतना ही कम है। आज की धर्म सभा में मनीषा जी लूंकड ने 31 उपवास के प्रत्याख्यान किए। इसी प्रकार कई धर्म प्रेमी बंधुओं ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान किए। आज की धर्म सभा में मुंबई, सिंधनूर पुणे एवं चेन्नई के कई उपनगरों से श्रद्धालु उपस्थित हुए।