साध्वी जी ने बताया जीवन निर्माण के लिए आवश्यक है भगवान महावीर की वाणी
Sahevaani.com/शिवपुरी ब्यूरो। भगवान महावीर स्वामी ने उत्तराध्यन सूत्र में बताया है कि जीवन निर्माण के लिए विनय अत्यंत आवश्यक है। लेकिन अपने स्वार्थ के लिए सिर्फ झुकना और मीठे-मीठे शब्दों का उच्चारण करना ही विनय नहीं है। विनयवान होने के लिए मन में सरलता भी आवश्यक है। विनय से अपने लौकिक और लोकोत्तर दोनों जीवन को सफल और सार्थक बनाया जा सकता है। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने भगवान महावीर की अंतिम देशना का कमला भवन में वाचन करते हुए व्यक्त किए। इसके पूर्व साध्वी वंदनाश्री जी ने मै तेरे गुणगाऊ महावीर जी, गुण ही गुण हो जाऊ महावीर जी भजन का गायन किया।
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने जीवन को उपयोगी बनाने के लिए भगवान महावीर की वाणी को आज भी सार्थक बताया। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने बताया है कि अपने कानों को पवित्र रखो उन्हें सडऩे न दो। इस बात को भगवान महावीर ने कुत्ते के सड़े कानों का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसा कुत्ता हर जगह दुत्कारा जाता है। उन्होंने कहा कि साड़े कानों का अर्थ यह है कि हमें दूसरों की न तो निंदा सुननी चाहिए और न ही दूसरों की निंदा करनी चाहिए।
साध्वी जी ने बताया कि कान सडऩे से मन भी सडऩे लगता है और जब मन खराब होता है तो इंसान का झुकाव बुराई की ओर हो जाता है। ऐसा व्यक्ति फिर अपने गुरू की बात भी नहीं मानता। अनुशासन का उसके जीवन में कोर्ई स्थान नहीं होता। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने भगवान महावीर की वाणी का जिक्र करते हुए कहा कि शिष्य और पुत्र को अपने गुरू तथा पिता के प्रति अनुशासित होना चाहिए। समझदार शिष्य और पुत्र अनुशासन के प्रति क्रोध नहीं करता और क्षमा को धारण करता है।
साध्वी जी ने बताया कि भगवान महावीर ने फरमाया है कि जो शिष्य अनुशासन से कुपित नहीं होता वह गुरू के ज्ञान को प्राप्त करता है। साध्वी जी ने कहा कि शिष्य को विना पूछे नहीं बोलना चाहिए। यदि गुरू का इशारा हो तो ही बोलें। बिना पूछे समाधाना दिए जाने से समस्याऐं पैदा होती है। उन्होंने कहा कि बड़ों से नाराजगी रखो लेकिन उन्हें अपने तेबर न दिखाओ तथा पाप कारी भाषा का इस्तेमाल न करो। साध्वी जी ने कहा कि अहंकारी और हिंसा उत्पन्न करने वाली भाषा पाप कारी होती है। गुरू के कठोर शब्दों पर शिष्य को क्रोधित नहीं होना चाहिए और सोचना चाहिए कि यह मेरे भले के लिए बोले गए हैं। साध्वी जी ने कहा कि भगवान महावीर की देशना है कि विनीत शिष्य लोक और लोकोत्तर लाभ को प्राप्त करता है तथा वह पूज्यनीय बनता है एवं गुरू के हृदय में अपना स्थान बनाने में सफल होता है।
जिस घर में बड़ों का सम्मान कम होता है वहां अशांति का वास होता है
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि अपने घर को स्वर्ग और नरक बनाना आपके अपने हाथ में है। उन्होंने कहा कि जिस घर में बड़ों का सम्मान होता है, वहीं स्वर्ग है तथा वहां शांति का वास होता है तथा जिस घर में बड़ों का सम्मान होना कम हो जाता है वहां नरक पैदा हो जाता है तथा अशांति का वास होता है।