साहुकारपेट स्थित जैन आराधना भवन में विराजित गणिवर्य पदमचन्द्रसागर ने नवपद ओली पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सिद्धचक्र एक अमोघ चक्र है जो कर्मनाशक है। इसके केंद्र में अरिहंत भगवान है, जो देशना देते हंै, मार्गदर्शक है और मोक्ष का मार्ग बताते हैं। अरिहंत भगवंतों के आठ प्रातिहार्य होते हैं- अशोक वृक्ष, पुष्पवृष्टि, देव दुन्दुभि, दोनों तरफ चामर, सिंहासन, प्रभामंडल, दिव्य ध्वनि और समवसरण। वे 35 गुणयुत वाणी से युक्त होते हैं। उनके 34 अतिशय होते हैं, उनकी अनंत ऋद्धि होती है. अरिहंत बनने के लिए मानव को कम से कम 3 भव तो लेने ही पड़ते हैं। अरिहंत भगवंत परमार्थी-परार्थी हैं। हम साधारण मानव स्वयं के लिए वीशस्थानक तप करते हैं, लेकिन अरिहंत परमात्मा सवी जीव के लिए तप आदि करते हैं। स यग दर्शन पाई हुई आत्मा या तो स्वयं का कल्याण करती है या परिवार का कल्याण करती है और उत्कृष्ट से सब जीवों का कल्याण करती है।