चेन्नई. किसी विचारक ने बड़ी सुंदर बात कही-प्रकाश वहां है, जहां आदित्य है। प्रकाश वहां है जहां साहित्य है। जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट देवेन्द्र मुनि एक साहित्य सर्जक महापुरुष थे। उन्होंने अपने जीवन काल में लगभग 300-400 ग्रंथों का लेखन व संपादन किया। ऐसे महापुरुष की जन्म जयंति भी आज के ही दिन त्रयोदशी को आप और हम सभी मना रहे हैं।
यह विचार- ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा आचार्य देवेन्द्र मुनि ने मात्र 9 वर्ष की आयु में ही जैन मुनि भागवती दीक्षा अंगीकार कर ली थी। उनके गुरुदेव थे- उपाध्याय प्रवर पुष्कर मुनि। विशेष बात यह है कि आचार्य देवेन्द्र मुनि की जन्मदात्री माता एवं बहन ने भी जैन भागवती साध्वी दीक्षा ग्रहण की थी। आचार्य देवेन्द्र मुनि ने अनेक वर्षों तक जैन एवं जैनेत्तर आगम – ग्रंथों का तलस्पर्शी अध्ययन किया।
फलस्वरूप वे एक साहित्य मनीषी के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनकी सद्प्रेरणा से उदयपुर में तारक गुरु ग्रंथालय की स्थापना हुई। गुरुदेव ने बताया आचार्य आनंद ऋषि ने उन्हें श्रमण संघ का उपाचार्य घोषित किया। आचार्य श्री के देवलोक गमन के पश्चात देवेन्द्र मुनि तृतीय पट्टधर के रूप में प्रतिष्ठित हुए। जिस समय वे उत्तर भारत पधारे पद यात्रा करते हुए उस समय हमें भी उनके पावन दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
हमारे दादा गुरुदेव राष्ट्र संत उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी पद्म चन्द्र के पावन सान्निध्य में जब अंबाला (हरियाणा) में उनका अभिनंदन समारोह आयोजित हुआ उस समय आचार्य देवेन्द्र मुनि दादा गुरुदेव का हाथ पकड़ कर अपने शीश पर रखते और स्वयं ही हाथ घुमाते हुए कहते मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मेरे गुरुदेव का आशीर्वाद मुझे प्राप्त हो रहा है।
वाणी भूषण गुरुदेव प्रवर्तक अमर मुनि की प्रवचन शैली एवं संघ संगठन की संचालन कला से आचार्य स्वयं विशेष प्रभावित हुए थे। आज भी हमें स्मरण होता है कि जब भी कोई श्रद्धालु अमीर हो या गरीब उनके दर्शन करने आता वे सभी को आओ पुण्यवान, आओ भाग्यवान जैसे गरिमापूर्ण शब्दों से संबोधित करते थे। उनकी शहद व मिश्री से भी अधिक मधुर वाणी आज तक भी कानों में गूंजती है।