इंदौर। कृष्णगिरी पीठाधिपति राष्ट्रसंत, यतिवर्य डॉ.वसंतविजयजी म.सा. ने गुरुवार को कहा कि भगवान की भक्ति साधना यूं तो कभी भी किसी भी समय श्रद्धा भाव से की जा सकती है। मगर समय, नक्षत्र, दिशा, पर्व एवं मास के भी विशेष महत्व होते हैं।
इसी प्रकार सावन महीने में देवताओं की भक्ति विशेष फलदायी बतायी गई है, यानी निष्ठा पूर्वक की गयी श्रावणी भक्ति व्यक्ति का पुण्य बढ़ाती है।
उन्होंने इंदौर के श्री नगीनभाई कोठारी चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में हृींकारगिरी तीर्थधाम में दिव्य भक्ति के चातुर्मासिक प्रवचन में सावन मास में की जाने वाली भक्ति की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सावन में देवी-देवताओं की भक्ति कर पुण्य के भागी बनकर मनोकामनाओ की पूर्ति होती है।

उन्होंने कहा कि श्रावण के महीने में भक्ति, आराधना करने से सभी सम्पन्न बनेंगे। आप जितनी भी भक्ति करते हो उसकी शक्ति का जीवन में उपयोग करने सीख देते हुए संतश्रीजी ने कहा कि ईश्वरीय कृपारुपी आनंद की अनुभूति महसूस करने के लिए श्रावणी भक्ति करनी चाहिए। डॉ. वसंतविजयजी म.सा. बोले कि आराधना, पूजा-अर्चना व भक्ति करने से भगवान सारी मुसीबतों को हर लेते हैं।
व्यक्ति द्वारा की गयी भक्ति व पूजन फलदायी मानी जाती है। इससे जीवन में न केवल सुख आएगा बल्कि सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। ट्रस्टी विजय कोठारी व वीरेंद्र कुमार जैन ने बताया कि इससे पहले सुबह के सत्र में गुरुवार को संतश्री वज्रतिलकजी की निश्रा में प्रतिक्रमण व सामूहिक भक्तामर मंत्र जाप किया गया।
उन्होंने बताया कि धाम में डॉ वसंतविजयजी की प्रेरणा से मूलनायक परमात्मा पार्श्वनाथजी की प्रतिमा का विधिकारक हेमंत वेदमूथा मकशी द्वारा 50 दिवसीय 18 अभिषेक गुरुवार को लाभार्थी हीराचंद भरत कुमार श्रीपाल पारख के माध्यम से करवाया गया।