हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया आदि ठाणा 7 साता पूर्वक विराजमान है। वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं, वह इस प्रकार हैं।
बंधुओं जैसे कि जीवन के बारे में बताया है जैसे कि सारा जीवन भावों का खेल है भावो को अगर सुंदर बना लो तो जीवन का माधुरी ही अलग होगा तब कहीं सूरदास का इकतारा बजेगा। कई चैतन्य का करताल धवनीत होगा। कहीं मीरा के घुंघरू थिरक उठेंगे असल में होना चाहिए। वह व्यक्ति भावों की दृष्टि से शिखर पर है जो भाव से भरा है अपने में डूबा है। आप मुझे बड़े रस्सी चुनते हैं अच्छी बात है पर मैं चाहता हूं।
आप मेरे अंतर भाव में उतरे आनंद का जनाब आ रहा है। कुछ अंतरंग में चले जहां एक खुमारी है। एक उत्सव है भीतर की रासलीला में आए हम अगर हमारे भीतर पर उतरे और उतरते चले जाएं तो हम हमारे मित्र श्री कृष्ण की रासलीला पाएंगे महावीर की रासलीला पाएंगे। अर्थात परिसीमा दूर अपने में पाएंगे। विचार को उधेड़बुन शांत होने पर भावों का सागर उपलब्ध होता है।
इसके लिए हमें मधुरता की बांसुरी हाथ में लेनी चाहिए भाव का दम साधना होगा। वित्त की स्वर लहरी के साथ एक कली होना चाहिए। जैसे कि हुए का पानी की तरह हमेशा हमारे दिल में रहते हैं। भाई के साथ एक होने से योग का जीवन की सबसे महत्व पूर्ण पहल है। भावों की पवित्रता सबसे बड़ी चीज है इसके भाव अच्छे हैं।
उसने मानव चारों धाम देख लिए उसके लिए तो कटौती में गंगा है। मन चंगा हाथों कसौटी में गंगा भाव अगर शुद्ध हो तो सबसे सदाचार प्रकट होता है। यदि भाव अशुद्ध हो तो समझ में प्रदूषण मिलता है। भाव यानि ना मन के आत्मा के परिणाम अंतर आत्मा की अवस्था को नापने झोकने का थर्मामीटर है।
जय जिनेंद्र जय महावीर🪷🪷