आचार्य भगवन्त पूज्यश्री हीराचंद्रजी म.सा ने जितेन्द्रमुनिजी म.सा को तपस्वी के अलंकरण से अलंकृत किया |
प्रवचन के कुछ अंश
स्वाध्याय भवन, पावटा जोधपुर मे आचार्य हीराचंद्रजी म.सा के सुशिष्य जितेन्द्रमुनिजी म.सा ने 53 उपवास के प्रत्याख्यान किए | परमाराध्य आचार्य भगवन्त पूज्यश्री हीराचंद्रजी म.सा ने जितेन्द्रमुनिजी म.सा को तपस्वी के अलंकरण से अलंकृत किया |
इस अवसर पर प्रवचन सभा मे श्रदेय श्री रविंद्रमुनिजी म.सा ने आचार्य हस्ती की वैराग्य से ओतप्रोत कृति “मेरे अंतर भया प्रकाश,नही मुझे अब किसी की आस” से श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर आचार्यश्री हीराचन्द्रजी म.सा के गुणगान रुप संस्कृत मे स्तुति फरमाई व कहा कि जोधपुर मे दीर्घ काल तक उपाध्याय भगवन्त श्री मानचन्द्रजी म.सा की अग्लान भावो से सेवा करते हुए गुरु भगवन्तो का आशीर्वाद प्राप्त करने वाले जितेन्द्रमुनिजी ने सहजता पूर्वक आज 53 उपवास के प्रत्याख्यान कर लिए हैं,म.सा ने पूर्व के पुण्य, वर्तमान के पुरुषार्थ व गुरुदेव के आशीर्वाद से अप्रमत्त तपस्या की हैं |
श्रदेय श्री अशोकमुनिजी म.सा ने गद्य-पद्य से तपस्वी के गुणगान करते हुए अनेक संस्मरणों को सुनाते हुए प्रभु से मंगल कामनाएं की,कि आपकी हर अभिलाषा पूरी हो,तप साधना करते हुए मुक्तिमार्ग की ओर अग्रसर हो | तपस्वी के दीर्घ तप के अनुमोदन मे “आदर्श तपस्या क्या हैं, कर के दिखलाया है ,आश्चर्य हुआ हैं,हमको,तप दीर्घ जो ठाया हैं,रत्न स्वर्ण महोत्सव, तप से चमकाया हैं” सुनाते हुए श्रद्धालुओं को गदगद कर दिया |
श्रदेय श्री योगेशमुनिजी म.सा ने”शुभ घड़ी शुभ दिन हैं सुहाना, तपस्या कर मन को मनाना” से तपस्वी के गुणगान करते हुए फरमाया कि आत्मा रुपी दूध मे विनय रुपी शक्कर हैं तो वैयावृत्य रुपी केसर मेवा हैं | आत्मा की चिकित्सा मे तीन बाते महत्वपूर्ण हैं, तप- महाव्रत ओषधि रुप हैं,समिति पथ्य रुप व गुप्ति परहेज रुप हैं | संकल्प को प्रकट करके पूर्ण करने मे अधिक प्रयास व संघर्ष करना पड़ता हैं,पर सहज रुप से बिना प्रकट किए जो किया जाता हैं,वो संकल्प स्वतः पूर्ण हो जाता हैं,संकल्प प्रकट करने के लिए नही अपितु मन मे धारण करते हुए पूर्ण करने के लिए होते हैं | विनय व वैयावृत्य गुण जो कि श्रदेय तपस्वी मुनिराज मे परिलक्षित हुए हैं,उन गुणों मे वे और आगे बढ़े, उनमे यह दोनों गुण और अधिक विकसित हो |
साध्वी समीक्षाप्रभाजी ने गुणगान करते हुए कहा “बनता वही जिनेन्द्र, उत्तम जिनका केन्द्र, वन्दन जिन्हें करते इन्द्र व नरेन्द्र,वही हैं मुनि जितेन्द्र” | जिनेन्द्र बनना हैं तो जितेन्द्र बनना ही होगा, पांच इन्द्रियों के 23 विषय व 240 विकारों को जीतना ही होगा |
साध्वी श्री दिव्यप्रभाजी म.सा ने तप की महिमा बताते हुए कहा कि किसान भयंकर असहनीय ठण्ड या भीषण गर्मी के समय सहन करते हुए खेत मे बीजारोपन करे तो यह तप की श्रेणी मे नही आता | जिनशासन मे तप वो कहलाता हैं जो तन के ताप, मन के पाप और जीवन के संताप को मिटाता हैं | तपस्वी ने दीर्घ तप मे स्वाध्याय का आहार,अप्रमतत्ता का सेवन, समता का गरिष्ठ भोजन किया हैं,तो अनुप्रेक्षा से पाचन भी किया हैं,53 की तपस्या करते हुए जिनशासन को यादगार बनाया हैं |
साध्वी विनीतप्रभाजी म.सा ने गुणगान करते हुए कहा कि “जीत लिया सेवा से गुरु का मन,गुर भगवन्त हो गये प्रसन्न” धन बल,विद्या बल आदि सभी बलों में सर्वश्रेष्ठ तप बल हैं |
दीर्घ तपस्वी श्रदेय श्री जितेन्द्रमुनिजी म.सा ने उनके तपस्या व संयममय जीवन मे समस्त सहयोगी सन्त रत्नों के सहयोग के लिए एक-एक सन्तों के नाम का उल्लेख करते हुए सभी सहयोगी सन्त रत्नों के प्रति साधुवाद ज्ञापित करते हुए आचार्य पूज्यश्री हीराचन्द्रजी म.सा भावी आचार्य पूज्यश्री महेन्द्रमुनिजी म.सा उपाध्याय भगवन्त पूज्यश्री मानचन्द्रजी म.सा के उपकारों व आशीर्वाद से ही तपस्या संभव हुई,ऐसे कृतज्ञता पूर्ण भाव रखें|
भावी आचार्य पूज्यश्री महेन्द्रमुनिजी म.सा ने तपस्वी सन्तरत्न जितेन्द्रमुनिजी म.सा के तपोमय जीवन व विभिन्न तप साधनाओं का उल्लेख करते हुए अनुमोदन रुप मे गुणगान किए व उनके विनम्रता, सरलता,सहजता, सेवा आदि विशिष्ट गुणो पर प्रकाश किया व उनके चरित्रमय जीवन के अनेक संस्मरणों को प्रवचन रुप मे फरमाया | रत्नवंश के भावी आचार्य पूज्यश्री महेन्द्रमुनिजी म.सा ने रत्नवंश के सन्त सतियों के दीर्घ तपस्यामय इतिहास की पूर्ण जानकारी देते हुए हैं फरमाया कि रत्नवंश के इतिहास मे 117 वर्षों पश्चात सन्तरत्न ने दूसरी दीर्घ तपस्या कर इतिहास स्थापित किया हैं,इसके पूर्व पांचवे आचार्य पूज्यश्री विनयचन्द्रजी म.सा के सुशिष्य श्री भगवानदासजी म.सा ने विक्रम संवत 1964 मे 65 उपवास की दीर्घ तपस्या की थी | उन्होंने फरमाया कि श्री जितेन्द्रमुनिजी पूरी तपस्या मे आड़ा आसान नही किया, एक बार भी लेटे नही,अर्थात सोये नही, बैठे-बैठे ही पूरी तपस्या काल मे अप्रमत्त रहे,उनके तपोमय संयममय जीवन को परखते हुए गुरुदेव आचार्य पूज्यश्री हीराचंद्रजी म.सा ने श्री मोहनमुनिजी म.सा के पश्चात आज श्री जितेन्द्रमुनिजी म.सा को तपस्वी अलंकरण से अलंकृत किया हैं |
श्री धर्मचन्दजी जैन ने प्रवचन सभा का संचालन करते हुए तपस्या के अनुमोदन मे भक्ति रुप मे स्तुति करते हुए मुक्ति के सोपान रुप मे भारत वर्ष मे गतिशील ज्ञान-दर्शन- चरित्र-तप की विस्तृत आराधना की जानकारी दी | जोधपुर संघ के अध्यक्ष तपस्वी सेवाभावी श्रावक रत्न श्री सुभाषचंदजी गुंदेचा ने भाव विभोर होकर तपस्या के अनुमोदन रुप मे स्तुति प्रस्तुति की |
महासतीजी विमलेशप्रभाजी म.सा ने सोलह उपवास व महासती निरंजनाश्रीजी म.सा ने 9 उपवास के प्रत्याख्यान किये | इस पावन एतिहासिक प्रसंग पर पाली से 80 एकान्तर तप के तपस्वी श्री संघ धनारी श्री संघ,जलगांव आदि अनेक क्षेत्रो से श्रावक- श्राविकाएं, चेन्नई से अनोपचन्द संदीप शांतिलाल सुमेरचंद बागमार, दौलतमल रंगरुपमल सिद्दार्थ चोरडिया गौतमचन्द दिलीप मुणोत, के.प्रकाशचन्द एच महावीरचन्द ओस्तवाल, चम्पालाल भंसाली, रतनलाल बोथरा,थानमल आबड,श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ तमिलनाडु के कार्याध्यक्ष आर नरेन्द्र कांकरिया सहित देश के विभिन्न क्षेत्रो से अनेक श्रद्धालुओं ने पांच-पांच सामायिक की साधना व 11 उपवास,तेले बेले,उपवास आदि विभिन्न तपस्याओं के प्रत्याख्यान किए |
प्रेषक : आर नरेन्द्र कांकरिया चेन्नई- भोपालगढ़,कार्याध्यक्ष श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ,तमिलनाडु